लम्बी आयु की परिकल्पना आज हम आपको नीम करोली बाबा जी द्वारा बताये गए लम्बी आयु के मंत्र के बारें में बताएँगे। ऐसा कोई भी मनुष्य नहीं जो चिरंजीवी नहीं बनना चाहता अर्थात ऐसा भी कोई नहीं जो एक पूर्ण आयु को प्राप्त नहीं करना चाहता। हम में से हर किसी की चाहत होती है कि हमें एक स्वस्थ जीवन और एक लंबी आयु प्राप्त हो पर हमारी दिनचर्या ऐसी है कि हम चाह कर भी एक स्वस्थ जीवन को नहीं पा पते है और जब शरीर ही स्वस्थ नहीं है तो लंबी आयु की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आज भी दुनिया के कई देश ऐसे हैं जहां 100 से अधिक वर्ष की आयु के व्यक्ति आज भी पूर्णतया स्वस्थ जीवन व्यतीत कर रहे है। इसका कारण केवल उनकी स्वस्थ जीवन शैली है। स्वस्थ जीवन शैली स्वस्थ जीवन शैली क्या होती है इसके बारे में हम सभी को विचार करना चाहिए क्योंकि अगर हमारे अतिरिक्त कोई दूसरा प्राणी है जो एक स्वस्थ जीवन को जीकर एक लंबी आयु को प्राप्त कर सकता है तो हम क्यों नहीं प्राप्त कर सकते ? स्वस्थ जीवन का मतलब होता है कि अपने आचार-विचार,अपने व्यवहार, अपने भोजन में सैयमित रहना अर्थात अपने शरीर को केवल उतना ही खाद्य साम...
॥ अथ वामन (परिवर्तिनी ) एकादशी माहात्म्य ॥
धर्मराज युधिष्ठिर बोले कि हे भगवान् ! भादों की शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम तथा विधि क्या है। उस एकादशी के व्रत को करने से कौन सा फल मिलता है तथा उसका उपदेश कौन सा है? सो सब कहिए।
श्रीकृष्ण भगवान बोले कि हे राजश्रेष्ठ ! अब मैं अनेक पाप नष्ट करने वाली तथा अन्त में स्वर्ग देने वाली भादों की शुक्लपक्ष की वामन नाम की एकादशी की कथा कहता हूँ। इस एकादशी को जयन्ती एकादशी भी कहते हैं। इस एकादशी की कथा के सुनने मात्र से ही समस्त पापों का नाश हो जाता है। इस एकादशी के व्रत का फल वाजपेय यज्ञ के फल से भी अधिक है। इस जयंती एकादशी की कथा से नीच पापियों का उद्धार हो जाता है। यदि कोई धर्म परायण मनुष्य एकादशी के दिन मेरी पूजा करता है तो मैं उसे संसार की पूजा का फल देता हूँ। जो मनुष्य मेरी पूजा करता है उसे मेरे लोक की प्राप्ति होती है। इस में किंचित मात्र भी संदेह नहीं। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन श्री वामन भगवान की पूजा करता है वह तीनों देवता अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु, महेश की पूजा करता है। जो मनुष्य इस एकादशी का व्रत करते हैं उन्हें इस संसार में कुछ भी करना शेष नहीं रहता।
एकादशी के दिन श्री विष्णु भगवान करवट बदलते हैं इसलिए इसे परिवर्तनी एकादशी भी कहते हैं इस पर श्री युधिष्ठिर बोले कि हे भगवान ! आपके वचनों को सुनकर मुझे महान सन्देह हो रहा है कि आप किस प्रकार सोते तथा करवट बदलते हैं। आप ने बलि को क्यों बांधा और वामन रूप धारण करके क्या लीलायें की? चातुर्मास्य व्रत की विधि क्या है तथा आपके शयन करने पर मनुष्य का क्या कर्त्तव्य है सो सब विस्तार पूर्वक कहिये। श्री कृष्ण भगवान बोले कि हे राजन् ! अब आप पापों को नष्ट करने वाली कथा का श्रवण करो।
त्रेता युग में एक बलिनाम का दानव था। वह अत्यंत भक्त, दानी, सत्यवादी तथा ब्राह्मणों की सेवा करता था। वह अपनी भक्ति के प्रभाव से स्वर्ग में इंद्र के स्थान पर राज्य करने लगा। इंद्र तथा अन्य देवता इस बात को सहन न कर सके और भगवान के पास प्रार्थना करने लगे। अंत में भगवान ने वामन रूप धारण किया। मैंने अत्यन्त तेजस्वी ब्राह्मण बालक के रूप में राजा बलि को जीता।
इस पर युधिष्ठिर बोले कि हे जनार्दन आपने वामन रूप धारण करके बलि को किस प्रकार जीता सो सब सविस्तार समझाइए। श्री कृष्ण भगवान् बोले कि हे राजन! मैंने वामन का रूप धारण करके राजा बलि से याचना की कि हे राजन् तुम तीन पैर भूमि दे दो इससे तुम्हारे लिए तीन लोक दान का फल प्राप्त होगा। राजा बलि ने इस छोटी सी याचना को स्वीकार कर लिया और भूमि देने को तैयार हो गया। तब मैंने अपने आकार को बढ़ाया और भूलोक में पैर, भुवलोक में जंघा, स्वर्गलोक में कमर, महलोक में पेट, जनलोक में हृदय, तपलोक में कंठ और सत्यलोक में मुख रखकर अपने शिर को ऊँचा उठा लिया। उस समय सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, इन्द्र तथा अन्य देवता आदि शास्त्रानुसार मेरी स्तुति करने लगे। उस समय राजा बलि को पकड़ा और पूछा कि हे राजन।
अब मैं तीसरा पैर कहां रक्खूँ। इतना सुनकर राजा बलि ने अपना शिर नीचा कर लिया उस पर मैंने अपना तीसरा पैर रख दिया। और वह भक्त दानव पाताल को चला गया जब मैंने उसे अत्यन्त विनीत पाया तो मैंने उससे कहा कि हे बलि मैं सदैव तुम्हारे पास ही रहूँगा! भादों के शुक्लपक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी नामक एकादशी के दिन मेरी एक प्रतिमा राजा बलि के पास रहती है और एक क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करती रहती है। इस एकादशी को विष्णु भगवान सोते हुए करवट बदलते हैं। इस दिन त्रिलोकी के नाथ श्री विष्णु भगवान की पूजा की जाती है। इस में चावल और दही सहित रूपा का दान दिया जाता है। इस दिन रात्रि को जागरण करना चाहिए। इस प्रकार व्रत करने से मनुष्य समस्त पापों से मुक्त होकर स्वर्गलोक को जाता है। जो इन पापों को नष्ट करने वाली कथा को सुनते हैं, उन्हें अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है।
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