Neem Karoli Baba Ki Mahasamadhi आप सभी ये जानने को उत्सुक होंगे की तब क्या हवा जब नीम करोली बाबा ने कहा की मैं क्या कर सकता हूँ जब भगवान ही मुझे बुला रहे हैं ? आज हम आपके इसी प्रश्न का उत्तर देने आए है। 10 सितंबर 1973 को नीम करोली बाबा ने महासमाधि क्यों ली अगले दिन सुबह, 10 सितंबर को, बाबा आगरा पहुंचे और लगभग 6 बजे जगमोहन शर्मा के घर गए। शर्मा जी ने उनका स्वागत किया और उन्हें पता चला कि बाबा का वापसी का टिकेट काठगोदाम के लिए भी उसी दिन रात की रेलगाड़ी से था। बाबा ने नाई बुलाया और दाढ़ी और बाल मुंडवा दिए। उन्होंने केवल चौलाई (रामदाना) खाया और कहा, "अब, अनाज और फलों से पोषण कम होता है। रामदाना बनाओ, में आज ये ही लूँगा।" फिर उन्होंने शर्मा से कहा, "आगे का समय खराब है। बड़े घरों में नहीं रहो। वहां लूटमार और हत्या अधिक होगी। छोटे घर में रहो।" पूरे दिन बाबा ने इसी तरह की बातें की। उन्होंने शर्मा के पिता से कहा, "जब शरीर बूढ़ा हो जाता है, यह बेकार हो जाता है। इससे कोई लगाव नहीं होना चाहिए।" बाबा काफी खुशहाल मूड में थे। उन्हें ऐसे देखकर शर्मा की सास न
क्यों हमें मंदिर में दर्शन के बाद थोड़ी देर के लिए वहां बैठना चाहिए? बहुत सारे लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है कि जब कभी भी हम सब मंदिर जाते हैं तो मंदिर में भगवान के दर्शन करने के उपरांत क्या कुछ समय के लिए मंदिर की भूमि पर विश्राम करना चाहिए अर्थात क्या कुछ समय के लिए हमें मंदिर में बैठना चाहिए ? इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए अनेक लोगों ने प्रश्न किया पर कोई सही उत्तर न पा सका। आज हम पूर्ण तर्क विधि से आपको सही उत्तर देने का प्रयास करेंगे। सर्वप्रथम हमको यह जानना है कि मंदिर कौन सी जगह होती है ? मंदिर क्या है ? मंदिर वह स्थान है जहां ईश्वरी शक्ति का निवास होता है। यूं तो ईश्वरीय शक्ति संसार के हर कण में निवास करती है परंतु जिस प्रकार हवा होते हुए भी बिना पंखा चलाएं हमें हवा महसूस नहीं होती, ठीक उसी प्रकार भगवान तो सर्वत्र व्याप्त है पर उसे महसूस करने के लिए हमें भगवान के मंदिर में आश्रय लेना पड़ता है। भगवान का मंदिर वह स्थान है जहां पर प्रतिदिन लाखों-करोड़ों भक्त आते हैं, भगवान की पूजा अर्चना करते हैं और उनकी पूजा-अर्चना से उत्पन्न होने वाली सकारात्मक उर्जा उस मंदिर के पवित्र