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Showing posts from November, 2022

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Bhandara: 15 June Aur Neem Karoli Baba

15 जून और कैंची धाम का भंडारा  15 जून १९६४ हम सभी के हृदय में धर्म स्थापना दिवस के रूप में सदैव के लिए यादगार बना हुआ है क्योंकि यह वही तारीख है जब परम पूज्य श्री नीम करोली बाबा जी ने श्री कैंची धाम में अपना आश्रय स्थल अपने आश्रम के रूप में बनाया था। आज उनके आश्रम को हम सभी भक्त अपना आश्रय स्थल मानते हैं और लाखों की संख्या से बढ़कर करोडो की संख्या में भक्त उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने की इच्छा से श्री कैंची धाम आते रहते है। बाबा किसी पहचान के मोहताज नहीं थे। नीम करोली बाबा के भक्त उनके आशीर्वाद से कभी दूर नहीं रहते अपितु हमेशा बाबा की कृपा अपने भक्तों पर बानी ही रहती है।  बाबा अपने भक्तो से एक बात सदैव कहते थे की "जब तुम मुझे बुलाओगे तब मैं तेरे पास ही रहूंगा" इस बात का भरोसा और विश्वास तुझे रखना होगा क्योंकि तेरा विश्वास और तेरा भरोसा जीतना अटल रहेगा उतनी ही शीघ्र  तुम तक पहुँचेगी। बाबा के भक्तो का विश्वास  बाबा का मानना था कि अगर शरण में जाना ही है हनुमान जी की शरण में जाओ क्योकि श्री राम के दर्शन उनकी इच्छा से होते हैं और श्री राम की कृपा भी उन्हीं की कृ...

GRAHAN: सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण क्यों लगता है? | ग्रहण की पौराणिक कथा

चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण क्यों लगता है? आज के भौतिक युग में अनेकों कारण बताए गए हैं परंतु हम सनातन प्रेमियों को उस परम सत्य को जानना आवश्यक है जिसके कारण सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण की शुरुआत हुई।  बात उस समय की है जब समुद्र को मथ कर अमृत निकालने का प्रयास किया जा रहा था। समुद्र मंथन के कारण समुद्र में से अनेकों रत्न उत्पन्न हो रहे थे जिनमें से हलाहल विष भी निकला। हलाहल विष समस्त संसार को नष्ट करने के लिए आगे बढ़ रहा था कि तभी देवों के देव महादेव ने समस्त सृष्टि की रक्षा के लिए उस हलाहल विष को अपने कंठ में धारण कर नीलकंठ हो गए। समस्त देवताओं ने महादेव को प्रणाम कर सृष्टि की रक्षा के उत्तरदायित्व को निभाने के लिए उनका उपकार माना और पुनः समुद्र को मथने में लग गए। समस्त रत्नों के समुद्र से निकलने के पश्चात अंत में भगवान धन्वंतरी अमृत का कलश लेकर समुद्र से बाहर आए। अमृत कलश को प्राप्त करते ही समस्त देवता और दानव आपस में झगड़ने लगे।  भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर दैत्यों को शांत कराया और देवताओं और दानवों दोनों को पंक्ति बघ करते हुए अमृत का बांटना शुरू किया। मोहिनी रूप धारी...

तुलसी कौन थी? | तुलसी विवाव की पौराणिक कथा

महासती वृंदा की आत्म कथा  प्रिय भक्तों, आज हम आप सभी के समक्ष महासती वृंदा की पौराणिक कथा को लेकर आए हैं। महा सती वृंदा कौन थी? उनको सती नारी क्यों कहा जाता है? उनको तुलसी का नाम किसने और क्यों दिया? समस्त प्रश्नों के उत्तर आज कि पौराणिक कथा में आपको प्राप्त होंगे।  मित्रों, वृंदा राक्षस कुल में उत्पन्न हुई एक तेजस्वी कन्या थी जो भगवान विष्णु की परम भक्तन थी। समय-समय पर भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए अनेक अनुष्ठानों को करती हुई वह अपने परिवार में धीरे-धीरे बढ़ रही थी और भगवान विष्णु की उस पर विशेष कृपा रहती थी।  उधर दूसरी तरफ भगवान शिव के तीसरे नेत्र से निकली ज्वाला जो समुद्र में समा चुकी थी, उस ने एक बालक का रूप धर लिया था जिसका नाम समुद्र देवता ने जलंधर रखा। जालंधर भगवान शिव के शरीर से उत्पन्न होने के कारण तेजस्वि था जिसे समस्त देवता भी मिलकर जीत नहीं सकते थे। इतने पराक्रम और बल के साथ जलंधर ने धीरे-धीरे व्यस्क स्वरूप को धारण किया। तत्पश्चात 1 दिन समस्त राक्षसों ने गुरु शुक्राचार्य की आज्ञा से उसको राजा घोषित कर दिया।   जब जलंधर और वृंदा दोनों व्यस्क हो ग...