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Showing posts from November, 2022

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शुक्रवार का देवता कौन है? शुक्रवार का मंत्र क्या है?

शुक्रवार का दिन देवी महालक्ष्मी और शुक्र देव का दिन माना जाता है। शुक्रवार को मां लक्ष्मी की पूजा करने से जीवन में सुख-सुविधा की कमी नहीं रहती। साथ ही, शुक्र ग्रह की शुभता से सौंदर्य में निखार, ऐश्वर्य, कीर्ति और धन-दौलत प्राप्त होती है। Shukrawar ( Friday) Ka Devta शुक्रवार को मां संतोषी की पूजा और व्रत भी किया जाता है। हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, मां संतोषी को भगवान श्री गणेश की पुत्री माना जाता है। मान्यता है कि मां संतोषी की पूजा करने से साधक के जीवन में आ रही तमाम तरह की समस्याएं दूर होती हैं और उसे सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही, जिन्हें संतान सुख प्राप्त नहीं हो पा रहा वो संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को करते हैं। शुक्रवार को वैभव लक्ष्मी व्रत भी रखा जाता है. हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, माता वैभव लक्ष्मी से सुख-समृद्धि और धन-धान्य का आशीर्वाद पाने के लिए शुक्रवार का व्रत सबसे उत्तम उपाय है।  शुक्रवार का नाम शुक्र देवता के नाम पर ही पड़ा है। नॉर्स पौराणिक कथाओं में फ्रिग ओडिन की पत्नी हैं। उन्हें विवाह की देवी माना जाता था। शुक्रवार को किसका व्रत करना चाहिए?

GRAHAN: सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण क्यों लगता है? | ग्रहण की पौराणिक कथा

चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण क्यों लगता है? आज के भौतिक युग में अनेकों कारण बताए गए हैं परंतु हम सनातन प्रेमियों को उस परम सत्य को जानना आवश्यक है जिसके कारण सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण की शुरुआत हुई।  बात उस समय की है जब समुद्र को मथ कर अमृत निकालने का प्रयास किया जा रहा था। समुद्र मंथन के कारण समुद्र में से अनेकों रत्न उत्पन्न हो रहे थे जिनमें से हलाहल विष भी निकला। हलाहल विष समस्त संसार को नष्ट करने के लिए आगे बढ़ रहा था कि तभी देवों के देव महादेव ने समस्त सृष्टि की रक्षा के लिए उस हलाहल विष को अपने कंठ में धारण कर नीलकंठ हो गए। समस्त देवताओं ने महादेव को प्रणाम कर सृष्टि की रक्षा के उत्तरदायित्व को निभाने के लिए उनका उपकार माना और पुनः समुद्र को मथने में लग गए। समस्त रत्नों के समुद्र से निकलने के पश्चात अंत में भगवान धन्वंतरी अमृत का कलश लेकर समुद्र से बाहर आए। अमृत कलश को प्राप्त करते ही समस्त देवता और दानव आपस में झगड़ने लगे।  भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर दैत्यों को शांत कराया और देवताओं और दानवों दोनों को पंक्ति बघ करते हुए अमृत का बांटना शुरू किया। मोहिनी रूप धारी भगवान वि

तुलसी कौन थी? | तुलसी विवाव की पौराणिक कथा

महासती वृंदा की आत्म कथा  प्रिय भक्तों, आज हम आप सभी के समक्ष महासती वृंदा की पौराणिक कथा को लेकर आए हैं। महा सती वृंदा कौन थी? उनको सती नारी क्यों कहा जाता है? उनको तुलसी का नाम किसने और क्यों दिया? समस्त प्रश्नों के उत्तर आज कि पौराणिक कथा में आपको प्राप्त होंगे।  मित्रों, वृंदा राक्षस कुल में उत्पन्न हुई एक तेजस्वी कन्या थी जो भगवान विष्णु की परम भक्तन थी। समय-समय पर भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए अनेक अनुष्ठानों को करती हुई वह अपने परिवार में धीरे-धीरे बढ़ रही थी और भगवान विष्णु की उस पर विशेष कृपा रहती थी।  उधर दूसरी तरफ भगवान शिव के तीसरे नेत्र से निकली ज्वाला जो समुद्र में समा चुकी थी, उस ने एक बालक का रूप धर लिया था जिसका नाम समुद्र देवता ने जलंधर रखा। जालंधर भगवान शिव के शरीर से उत्पन्न होने के कारण तेजस्वि था जिसे समस्त देवता भी मिलकर जीत नहीं सकते थे। इतने पराक्रम और बल के साथ जलंधर ने धीरे-धीरे व्यस्क स्वरूप को धारण किया। तत्पश्चात 1 दिन समस्त राक्षसों ने गुरु शुक्राचार्य की आज्ञा से उसको राजा घोषित कर दिया।   जब जलंधर और वृंदा दोनों व्यस्क हो गए तब राक्षस गुरु शुक्राच