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शुक्रवार का देवता कौन है? शुक्रवार का मंत्र क्या है?

शुक्रवार का दिन देवी महालक्ष्मी और शुक्र देव का दिन माना जाता है। शुक्रवार को मां लक्ष्मी की पूजा करने से जीवन में सुख-सुविधा की कमी नहीं रहती। साथ ही, शुक्र ग्रह की शुभता से सौंदर्य में निखार, ऐश्वर्य, कीर्ति और धन-दौलत प्राप्त होती है। Shukrawar ( Friday) Ka Devta शुक्रवार को मां संतोषी की पूजा और व्रत भी किया जाता है। हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, मां संतोषी को भगवान श्री गणेश की पुत्री माना जाता है। मान्यता है कि मां संतोषी की पूजा करने से साधक के जीवन में आ रही तमाम तरह की समस्याएं दूर होती हैं और उसे सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही, जिन्हें संतान सुख प्राप्त नहीं हो पा रहा वो संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को करते हैं। शुक्रवार को वैभव लक्ष्मी व्रत भी रखा जाता है. हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, माता वैभव लक्ष्मी से सुख-समृद्धि और धन-धान्य का आशीर्वाद पाने के लिए शुक्रवार का व्रत सबसे उत्तम उपाय है।  शुक्रवार का नाम शुक्र देवता के नाम पर ही पड़ा है। नॉर्स पौराणिक कथाओं में फ्रिग ओडिन की पत्नी हैं। उन्हें विवाह की देवी माना जाता था। शुक्रवार को किसका व्रत करना चाहिए?

GRAHAN: सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण क्यों लगता है? | ग्रहण की पौराणिक कथा

चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण क्यों लगता है? आज के भौतिक युग में अनेकों कारण बताए गए हैं परंतु हम सनातन प्रेमियों को उस परम सत्य को जानना आवश्यक है जिसके कारण सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण की शुरुआत हुई।  बात उस समय की है जब समुद्र को मथ कर अमृत निकालने का प्रयास किया जा रहा था। समुद्र मंथन के कारण समुद्र में से अनेकों रत्न उत्पन्न हो रहे थे जिनमें से हलाहल विष भी निकला। हलाहल विष समस्त संसार को नष्ट करने के लिए आगे बढ़ रहा था कि तभी देवों के देव महादेव ने समस्त सृष्टि की रक्षा के लिए उस हलाहल विष को अपने कंठ में धारण कर नीलकंठ हो गए। समस्त देवताओं ने महादेव को प्रणाम कर सृष्टि की रक्षा के उत्तरदायित्व को निभाने के लिए उनका उपकार माना और पुनः समुद्र को मथने में लग गए। समस्त रत्नों के समुद्र से निकलने के पश्चात अंत में भगवान धन्वंतरी अमृत का कलश लेकर समुद्र से बाहर आए। अमृत कलश को प्राप्त करते ही समस्त देवता और दानव आपस में झगड़ने लगे।  भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर दैत्यों को शांत कराया और देवताओं और दानवों दोनों को पंक्ति बघ करते हुए अमृत का बांटना शुरू किया। मोहिनी रूप धारी भगवान वि

तुलसी कौन थी? | तुलसी विवाव की पौराणिक कथा

महासती वृंदा की आत्म कथा  प्रिय भक्तों, आज हम आप सभी के समक्ष महासती वृंदा की पौराणिक कथा को लेकर आए हैं। महा सती वृंदा कौन थी? उनको सती नारी क्यों कहा जाता है? उनको तुलसी का नाम किसने और क्यों दिया? समस्त प्रश्नों के उत्तर आज कि पौराणिक कथा में आपको प्राप्त होंगे।  मित्रों, वृंदा राक्षस कुल में उत्पन्न हुई एक तेजस्वी कन्या थी जो भगवान विष्णु की परम भक्तन थी। समय-समय पर भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए अनेक अनुष्ठानों को करती हुई वह अपने परिवार में धीरे-धीरे बढ़ रही थी और भगवान विष्णु की उस पर विशेष कृपा रहती थी।  उधर दूसरी तरफ भगवान शिव के तीसरे नेत्र से निकली ज्वाला जो समुद्र में समा चुकी थी, उस ने एक बालक का रूप धर लिया था जिसका नाम समुद्र देवता ने जलंधर रखा। जालंधर भगवान शिव के शरीर से उत्पन्न होने के कारण तेजस्वि था जिसे समस्त देवता भी मिलकर जीत नहीं सकते थे। इतने पराक्रम और बल के साथ जलंधर ने धीरे-धीरे व्यस्क स्वरूप को धारण किया। तत्पश्चात 1 दिन समस्त राक्षसों ने गुरु शुक्राचार्य की आज्ञा से उसको राजा घोषित कर दिया।   जब जलंधर और वृंदा दोनों व्यस्क हो गए तब राक्षस गुरु शुक्राच

10 बिंदुओं से समझे हनुमान जी को | हनुमान गाथा रहस्य

प्रिय भक्तों, आज हम आप सभी के समक्ष भक्त शिरोमणि श्री हनुमान जी महाराज के जीवन से जुड़े हुए कुछ ऐसे रहस्य से पर्दा उठाएंगे जिनके बारे में विस्तार से शास्त्रों में बताया गया है।  10 बिंदुओं में सम्पूर्ण हनुमान गाथा हनुमान जी महाराज भगवान शिव के 11 वें रुद्र अवतार होने के साथ ही साथ भक्तों की श्रेणी में परम पूज्य हैं और सर्वप्रथम उन्हीं का नाम लिया भी जाता है क्योंकि भक्ति की जो पराकाष्ठा शिव अवतार हनुमान ने प्रस्तुत की वैसा उदाहरण आज तक संसार में कोई प्रस्तुत न कर सका।  1. हनुमानजी का जन्म स्थान : हनुमान जी के जन्म स्थान के विषय में भक्तों में काफी मतभेद हैं और इन्ही मतभेदों के बीच में तीन स्थान मुख्य रूप से प्रकट होते हैं जिन स्थानों पर हनुमान जी के जन्म स्थान होने का दावा किया जाता है।   पहला स्थान हम्पी में है। ऐसा माना जाता है कि हम्पी में शबरी के गुरु मतंग ऋषि के आश्रम में हनुमान जी का जन्म हुआ था कुछ लोगों का मानना है कि हनुमान जी का जन्म हरियाणा के कैथल में हुआ था।  कैथल का ही पौराणिक नाम कपिस्थल था अर्थात यहां के राजा हनुमान जी के पिता महाराज केसरी थे क्योंकि वह

हनुमान जन्मोत्सव पर हनुमान जी के 10 गुणों का अनुसरण | 10 गुणों के सागर श्री हनुमान

प्रिय भक्तो श्री हनुमान जन्मोत्सव की आप सभी को ढेर सारी शुभकामनाएं। हम सभी जानते हैं कि राम भक्त हनुमान भगवान शिव के 11 अवतार हैं। श्री हनुमान जी महाराज को ही भक्त शिरोमणि की उपाधि भी प्राप्त है क्योंकि सनातन धर्म में श्री हनुमान जी महाराज से बड़ा भक्त ना बताया गया है ना देखा गया है। आज मां अंजनी के लाल पवन पुत्र श्री हनुमान जी महाराज के जन्म उत्सव के उपलक्ष में हम उनके जीवन के उन 10 गुणों की व्याख्या करेंगे जिनका अनुसरण करने से हम अपने व्यक्तित्व में श्री हनुमान जी महाराज के आशीर्वाद की अमिट छाप छोड़ सकते हैं। आप सभी से प्रार्थना है कि पवन पुत्र हनुमान जी महाराज के 10 गुणों को  ध्यानपूर्वक पढ़ें और इनका अनुसरण करने का प्रयास करें।   जय श्री राम।  हनुमान जी को कलियुग में सबसे प्रमुख ‘देवता’ के रूप में पूजा जाता है। रामायण के सुन्दर कांड और तुलसीदास की हनुमान चालीसा में बजरंगबली के चरित्र पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। इसके अनुसार हनुमान जी का किरदार हर रूप में युवाओं के लिए ही नहीं बल्कि हर आयु वर्ग के लिए प्रेरणादायक है। हनुमान जी के बारे में तुलसीदास

हनुमान चालीसा हिंदी अर्थ सहित | हनुमान चालीसा lyrics | हनुमान चालीसा का दिव्य पाठ | Lyrics of Hanuman Chalisa

हनुमान चालीसा महत्व   सनातन धर्म में हनुमान जी को भगवान शिव का 11 रुद्र अवतार माना जाता है। हनुमान जी की आराधना में हनुमान चालीसा का वैसा ही महत्व है जैसे श्री राम की आराधना में रामायण और रामचरितमानस का है।  भारतवर्ष में जहां कहीं भी हनुमान जी की आराधना की जाती है, वहां हनुमान चालीसा का पाठ किया जाता है परंतु बहुत सारे लोगों को अभी तक हनुमान चालीसा का शाब्दिक अर्थ नहीं पता है। आज हम आपको हनुमान चालीसा का शुद्ध शाब्दिक अर्थ समझायेंगे जिसको जानने के पश्च्यात हनुमान चालीसा पढ़ने पर आप स्वयं को हनुमान जी के अति समीप महसूस करेंगे।  हनुमान चालीसा सम्पूर्ण अर्थ सहित (Lyrics) श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि। बरनऊँ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि। अर्थ - गुरु महाराज के चरण कमलों की धूलि से अपने मन रुपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला हे। बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन कुमार। बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार। अर्थ- हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन करता हूँ। आप तो जानते ही हैं, कि मेरा शरीर औ

नरसिंह सुरक्षा कवच | Narsimha Suraksha Kavach

भगवान नृसिंह सुरक्षा कवच  - श्री कैंची धाम | Bhagwan Narasimha Suraksha Kavach - Shri Kainchi Dham    प्रिय भक्तो भगवान विष्णु के अवतारों में से एक अवतार भगवान नरसिंह का है। भगवान ने ये अवतार अपने परम प्रिय भक्त प्रहलाद के प्राण बचाने के लिए लिया था। अतः हम कह सकते है की भगवान का ये रूप अपने सभी भक्तो को उनके संकटों से मुक्ति प्रदान करता है।  भगवान नरसिंह कवच का जाप करते समय एक दीपक भगवान नरसिंह की प्रतिमा के सामने अवश्य जलाए और पाठ प्रारंभ करें। पूर्ण निष्ठा और भक्ति के साथ किया गया श्री नरसिंह कवच का पाठ कभी व्यर्थ नहीं जाता और अक्षय फल प्रदान करता है। || संकट हारी श्री #नृसिंह सुरक्षा कवच || नृसिंह कवचम वक्ष्येऽ प्रह्लादनोदितं पुरा । सर्वरक्षाकरं पुण्यं सर्वोपद्रवनाशनं ॥ सर्वसंपत्करं चैव स्वर्गमोक्षप्रदायकम ।  ध्यात्वा नृसिंहं देवेशं हेमसिंहासनस्थितं॥ विवृतास्यं त्रिनयनं शरदिंदुसमप्रभं ।  लक्ष्म्यालिंगितवामांगम विभूतिभिरुपाश्रितं ॥ चतुर्भुजं कोमलांगम स्वर्णकुण्डलशोभितं ।  ऊरोजशोभितोरस्कं रत्नकेयूरमुद्रितं ॥ तप्तकांचनसंकाशं पीतनिर्मलवासनं । इंद्रादिसुरमौलिस्थस्फुरन्माणिक्