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Showing posts from September, 2024

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Bhandara: 15 June Aur Neem Karoli Baba

15 जून और कैंची धाम का भंडारा  15 जून १९६४ हम सभी के हृदय में धर्म स्थापना दिवस के रूप में सदैव के लिए यादगार बना हुआ है क्योंकि यह वही तारीख है जब परम पूज्य श्री नीम करोली बाबा जी ने श्री कैंची धाम में अपना आश्रय स्थल अपने आश्रम के रूप में बनाया था। आज उनके आश्रम को हम सभी भक्त अपना आश्रय स्थल मानते हैं और लाखों की संख्या से बढ़कर करोडो की संख्या में भक्त उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने की इच्छा से श्री कैंची धाम आते रहते है। बाबा किसी पहचान के मोहताज नहीं थे। नीम करोली बाबा के भक्त उनके आशीर्वाद से कभी दूर नहीं रहते अपितु हमेशा बाबा की कृपा अपने भक्तों पर बानी ही रहती है।  बाबा अपने भक्तो से एक बात सदैव कहते थे की "जब तुम मुझे बुलाओगे तब मैं तेरे पास ही रहूंगा" इस बात का भरोसा और विश्वास तुझे रखना होगा क्योंकि तेरा विश्वास और तेरा भरोसा जीतना अटल रहेगा उतनी ही शीघ्र  तुम तक पहुँचेगी। बाबा के भक्तो का विश्वास  बाबा का मानना था कि अगर शरण में जाना ही है हनुमान जी की शरण में जाओ क्योकि श्री राम के दर्शन उनकी इच्छा से होते हैं और श्री राम की कृपा भी उन्हीं की कृ...

Bhado ki parivartani ekadashi ki Mahatma katha | Bhado Vaman Ekadashi Katha

॥ अथ वामन (परिवर्तिनी ) एकादशी माहात्म्य ॥ धर्मराज युधिष्ठिर बोले कि हे भगवान् ! भादों की शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम तथा विधि क्या है। उस एकादशी के व्रत को करने से कौन सा फल मिलता है तथा उसका उपदेश कौन सा है? सो सब कहिए। श्रीकृष्ण भगवान बोले कि हे राजश्रेष्ठ ! अब मैं अनेक पाप नष्ट करने वाली तथा अन्त में स्वर्ग देने वाली भादों की शुक्लपक्ष की वामन नाम की एकादशी की कथा कहता हूँ। इस एकादशी को जयन्ती एकादशी भी कहते हैं। इस एकादशी की कथा के सुनने मात्र से ही समस्त पापों का नाश हो जाता है। इस एकादशी के व्रत का फल वाजपेय यज्ञ के फल से भी अधिक है। इस जयंती एकादशी की कथा से नीच पापियों का उद्धार हो जाता है। यदि कोई धर्म परायण मनुष्य एकादशी के दिन मेरी पूजा करता है तो मैं उसे संसार की पूजा का फल देता हूँ। जो मनुष्य मेरी पूजा करता है उसे मेरे लोक की प्राप्ति होती है। इस में किंचित मात्र भी संदेह नहीं। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन श्री वामन भगवान की पूजा करता है वह तीनों देवता अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु, महेश की पूजा करता है। जो मनुष्य इस एकादशी का व्रत करते हैं उन्हें इस संसार में कुछ भी क...

Devi Saraswati: Gyan aur Kala Ki Avtar

देवी सरस्वती परिचय देवी सरस्वती, हिंदू पौराणिक कथाओं में पूजनीय हैं। वे ज्ञान, संगीत, कला, बुद्धि और शिक्षा की देवी हैं। वे लक्ष्मी और पार्वती के साथ त्रिदेवियों में से एक हैं, और अपने शांत और शुद्ध आचरण के लिए प्रसिद्ध हैं। सरस्वती को अक्सर सफेद पोशाक में दर्शाया जाता है, जो पवित्रता और ज्ञान का प्रतीक है। ऐतिहासिक महत्व सरस्वती की उत्पत्ति ऋग्वेद में देखी जा सकती है, जहाँ उनका उल्लेख नदी देवी के रूप में किया गया है। समय के साथ, उनका महत्व विकसित हुआ, और वे ज्ञान और शिक्षा की देवी बन गईं। सरस्वती नदी के साथ उनका जुड़ाव जीवन और ज्ञान के पोषण में उनकी भूमिका को उजागर करता है। प्रतीकवाद और प्रतिमा विज्ञान सरस्वती को आम तौर पर चार भुजाओं के साथ दर्शाया जाता है, जिसमें एक पुस्तक, एक माला, एक जल पात्र और एक वीणा होती है। इनमें से प्रत्येक वस्तु ज्ञान और रचनात्मकता के विभिन्न पहलुओं का प्रतीक है: पुस्तक: ज्ञान और शिक्षा का प्रतिनिधित्व करती है। माला: आध्यात्मिक ज्ञान और ध्यान का प्रतीक है। जल पात्र: पवित्रता और शुद्ध करने की शक्ति को दर्शाता है। वीणा: कला, विशेष रूप से संगी...