अद्भुत अष्टांग योग | Adbhut Ashtanga Yoga | Ashtanga Yoga History
अष्टांग योग के बारें में सनातन धर्म के शास्त्रों और पुराणों में आज से लाखो साल पहले ही विस्तृत जानकारी हमारे ऋषि मुनियों द्वारा प्रदान की जा चुकी है। आज हम सभी किसी न किसी रूप में उन महात्माओ के द्वारा बताये गए सिद्धांतो का अनुसरण करते है।
Ashtanga Yoga Definition
आयुर्वेद में बताया गया है कि जीवन में सदाचार को प्राप्त करने का साधन योग मार्ग को छोड़कर दूसरा कोई नहीं है। नियमित अभ्यास और वैराग्य के द्वारा ही योग के संपूर्ण लाभ को प्राप्त किया जा सकता है।
हमारे ऋषि मुनियों ने शरीर को ही ब्रम्हाण्ड का सूक्ष्म मॉडल माना है। इसकी व्यापकता को जानने के लिए शरीर के अंदर मौजूद शक्ति केन्द्रों को जानना ज़रूरी है। इन्हीं शक्ति केन्द्रों को ही ‘’चक्र कहा गया है।
अष्टचक्र
आयुर्वेद के अनुसार शरीर में आठ चक्र होते हैं। ये हमारे शरीर से संबंधित तो हैं लेकिन आप इन्हें अपनी इन्द्रियों द्वारा महसूस नहीं कर सकते हैं। इन सारे चक्रों से निकलने वाली उर्जा ही शरीर को जीवन शक्ति देती है।
आयुर्वेद में योग, प्राणायाम और साधना की मदद से इन चक्रों को जागृत या सक्रिय करने के तरीकों के ब्बारे में बताया गया है। आइये इनमें से प्रत्येक चक्र और शरीर में उसके स्थान के बारे में विस्तार से जानते हैं।
Contents
(A) आठ चक्रों का वर्णन :
1- मूलाधर चक्र
2- स्वाधिष्ठान चक्र
4- अनाहत चक्र
5- विशुद्धि चक्र
6- आज्ञा चक्र
7- मनश्चक्र- मनश्चक्र (बिन्दु या ललना चक्र)
8 – सहस्रार चक्र
(B) योग और अष्टचक्र का संबंध | What is Ashtanga Yoga |
(1) योग क्या है:
महर्षि पतंजलि का अष्टांग योग Ashtanga Yoga Patanjali
1- यम :
(a) अहिंसा
(b)सत्य
(c) अस्तेय
(d) ब्रम्हचर्य
(e) अपरिग्रह
2- नियम
3- आसन
4- प्राणायाम
5- प्रत्याहार
6- धारणा
7- ध्यान
8- समाधि
आठ चक्रों का वर्णन ( Ashtanga Yoga Series)
1- मूलाधर चक्र :
यह चक्र मलद्वार और जननेन्द्रिय के बीच रीढ़ की हड्डी के मूल में सबसे निचले हिस्से से सम्बन्धित है। यह मनुष्य के विचारों से सम्बन्धित है। नकारात्मक विचारों से ध्यान हटाकर सकारात्मक विचार लाने का काम यहीं से शुरु होता है।
2- स्वाधिष्ठान चक्र :
यह चक्र जननेद्रिय के ठीक पीछे रीढ़ में स्थित है। इसका संबंध मनुष्य के अचेतन मन से होता है।
3- मणिपूर चक्र :
इसका स्थान रीढ़ की हड्डी में नाभि के ठीक पीछे होता है। हमारे शरीर की पूरी पाचन क्रिया (जठराग्नि) इसी चक्र द्वारा नियंत्रित होती है। शरीर की अधिकांश आतंरिक गतिविधियां भी इसी चक्र द्वारा नियंत्रित होती है। 4- अनाहत चक्र :
यह चक्र रीढ़ की हड्डी में हृदय के दांयी ओर, सीने के बीच वाले हिस्से के ठीक पीछे मौजूद होता है। हमारे हृदय और फेफड़ों में रक्त का प्रवाह और उनकी सुरक्षा इसी चक्र द्वारा की जाती है। शरीर का पूरा नर्वस सिस्टम भी इसी अनाहत चक्र द्वारा ही नियत्रित होता है।
5- विशुद्धि चक्र :
गले के गड्ढ़े के ठीक पीछे थायरॉयड व पैराथायरॉयड के पीछे रीढ की हड्डी में स्थित है। विशुद्धि चक्र शारीरिक वृद्धि, भूख-प्यास व ताप आदि को नियंत्रित करता है।
6- आज्ञा चक्र :
इसका सम्बन्ध दोनों भौहों के बीच वाले हिस्से के ठीक पीछे रीढ़ की हड्डी के ऊपर स्थित पीनियल ग्रन्थि से है। यह चक्र हमारी इच्छाशक्ति व प्रवृत्ति को नियंत्रित करता है। हम जो कुछ भी जानते या सीखते हैं उस संपूर्ण ज्ञान का केंद्र यह आज्ञा चक्र ही है।
7- मनश्चक्र- मनश्चक्र (बिन्दु या ललना चक्र) :
यह चक्र हाइपोथेलेमस में स्थित है। इसका कार्य हृदय से सम्बन्ध स्थापित करके मन व भावनाओं के अनुरूप विचारों, संस्कारों व मस्तिष्क में होने वाले स्रावों का आदि का निर्माण करना है, इसे हम मन या भावनाओं का स्थान भी कह सकते हैं।
8 – सहस्रार चक्र :
यह चक्र सभी तरह की आध्यात्मिक शक्तियों का केंद्र है। इसका सम्बन्ध मस्तिष्क व ज्ञान से है। यह चक्र पीयूष ग्रन्थि (पिट्युटरी ग्लैण्ड) से सम्बन्धित है।
इन आठ चक्र (शक्तिकेन्द्रों) में स्थित शक्ति ही सम्पूर्ण शरीर को ऊर्जान्वित (एनर्जाइज), संतुलित (Balance) व क्रियाशील (Activate) करती है। इन्हीं से शारीरिक, मानसिक विकारों व रोगों को दूर कर अन्तःचेतना को जागृत करने के उपायों को ही योग कहा गया है।
अष्टचक्र व उनसे संबंधित स्थान एवं कार्य | Ashtanga Yoga Benefits
1- मूलाधार चक्र (Root chakra or pelvic plexus or coccyx center)
इस चक्र का स्थान- रीढ़ की हड्डी के अंत में कहा जाता है। उत्सर्जन तत्र, प्रजनन तत्र, गुद, मूत्राशय इत्यादि इसी चक्र के नियतंत्रण छेत्र माने जाते है।
मूलाधार चक्र के असंतुलन से मूत्र विकार, वृक्क रोग, अश्मरी व रतिज रोग आदि उत्पन्न होते है।
2- स्वाधिष्ठान चक्र (Sacral or sexual center)
स्थान- नाभि के नीचे, प्रजनन तत्र बन्ध्यत्व, ऊतक विकार, जननांग रोग
3- मणिपूर चक्र (Solar plexus or lumbar center or epigastric Sciar plexus)
स्थान - छाती के नीचे, आमाशय, आत्र, पाचन तंत्र, संग्रह व स्रावण
मणिपुर चक्र के असंतुलन से पाचन रोग, मधुमेह, रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी आ जाती है।
4- अनाहत चक्र (Heart chakra or cardiac plexus or dorsal center)
स्थान - छाती या सीने का का बीच वाला हिस्सा (वक्षीय कशेरुका)
अनाहत चक्र के असंतुलन से हृदय, फेफड़े , मध्यस्तनिका, रक्त परिसंचरण, प्रतिरक्षण तत्र, नाड़ी तत्रआदि से जुडी समस्याएं उत्पन्न हों सकती है।
हृदय रोग, रक्तभाराधिक्य (रक्तचाप)
थायमस ग्रन्थि (बाल्य ग्रन्थि)
रक्त परिसंचरण तत्र, श्वसन तंत्र , स्वतः प्रतिरक्षण तंत्र
5- विशुद्धि चक्र (Carotid plexus or throat or cervical center)
थायराइड और पैराथायरइड ग्रन्थि
ग्रीवा, कण्ठ, स्वररज्जु, स्वरयत्र,
चयापचय, तापनियत्रण
विशुद्ध चक्र के असंतुलन से श्वास, फेफड़ों से जुड़े रोग, अवटु ग्रन्थि, घेंघा आदि समस्याएं उत्पन्न होती है।
इसे अवटु ग्रन्थि, श्वसन तंत्र भी कहते है।
6- आज्ञा चक्र (Third eye or medullary plexus)
इसको अग्रमस्तिष्क का केन्द्र भी कहते है। मस्तिष्क तथा उसके समस्त कार्य, एकाग्रता, इच्छा शक्ति, अपस्मार, मूर्च्छा, पक्षाघात आदि का कारन यही चक्र होता है। इसे पीनियल ग्रन्थि या तत्रिका तंत्र भी कहते है।
7- मनश्चक्र या बिन्दुचक्र (Lower mind plexus or hypothalamus)
यह चक्र (चेतक) अर्थात थेलेमस के नीचे स्थित होता है। मस्तिष्क, हृदय, समस्त अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का नियत्रण, निद्रा आवेग, मेधा, स्वसंचालित तत्रिका तत्र समस्थिति इसी चक्र के कारन होती है। इस चक्र को मनःकायिक तथा तत्रिका तंत्र, पीयूष ग्रन्थि, संवेदी तथा प्रेरक तंत्र भी कहते है।
8- सहस्रार चक्र(Crown chakra or cerebral gland)
इस चक्र का स्थान - कपाल के नीचे होता है। आत्मा, समस्त सूचनाओं का निर्माण, अन्य स्थानों का एकत्रीकरण का कारन इसी चक्र को कहा जाता है।
सहस्त्रार चक्र के असंतुलन से हार्मोन्स का असंतुलन, चयापचयी विकार आदि विकार उत्पन्न होते है। ऐसे पीयूष ग्रन्थि, केन्द्रीय तत्रिका तंत्र (अधश्चेतक के द्वारा) भी कहते है।
योग और अष्टचक्र का संबंध :
अष्ट चक्रों को जानने व उनके अन्दर स्थित शक्तियों को जागृत व उर्ध्वारोहण के लिए क्या योग है? इसको समझना बहुत आवश्यक है। हर एक योग किसी ना किसी चक्र को जागृत करता है।
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