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नीम करोली बाबा ने बताया बीमारियों से मुक्ति पाने का मंत्र

Neem Karoli Baba Aur Rog Mukti Vaidik Mantra प्रिय भक्तों आज हम आप सभी को ऐसे मंत्र के बारे में बताएंगे जिसका उच्चारण करके आप सभी रोगों से मुक्ति पा सकते हैं। हम सभी के जीवन में अनेकों अनेक रोग कभी न कभी आ ही जाते हैं जिनकी वजह से हम सभी का जीवन हस्त व्यस्त हो जाता है। परम पूज्य श्री नीम करोली बाबा की कृपा से और हनुमान जी के आशीर्वाद से हम सभी को बाबा जी का सानिध्य प्राप्त हुआ और बाबा जी के सानिध्य में रहकर हम सभी ने राम नाम रूपी मंत्र को जाना जिसके उच्चारण मात्र से हम सभी को प्रभु श्री राम के साथ-साथ हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है। बाबा जी के दिशा निर्देशों के अनुसार हम सभी अपने जीवन की मोह माया से मुक्ति पा सकते हैं। यूं तो जब तक जीवन है तब तक माया से मुक्ति पाना संभव नहीं हो पता परंतु गृहस्थ जीवन में रहकर भी एक सन्यासी का जीवन जीना सहज हो सकता है यदि हम ईश्वर में अपने मन को रमाने का प्रयास करें और अपने कर्म पर ध्यान दे क्योंकि गीता में भी भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि कर्म ही प्रधान है। यदि हम बिना किसी लोभ के, बिना किसी आशा के, बिना ये सोचे कि यह पुण्य है या पाप केवल ...

नीम करोली बाबा ने बताया बीमारियों से मुक्ति पाने का मंत्र

Neem Karoli Baba Aur Rog Mukti Vaidik Mantra

प्रिय भक्तों आज हम आप सभी को ऐसे मंत्र के बारे में बताएंगे जिसका उच्चारण करके आप सभी रोगों से मुक्ति पा सकते हैं। हम सभी के जीवन में अनेकों अनेक रोग कभी न कभी आ ही जाते हैं जिनकी वजह से हम सभी का जीवन हस्त व्यस्त हो जाता है। परम पूज्य श्री नीम करोली बाबा की कृपा से और हनुमान जी के आशीर्वाद से हम सभी को बाबा जी का सानिध्य प्राप्त हुआ और बाबा जी के सानिध्य में रहकर हम सभी ने राम नाम रूपी मंत्र को जाना जिसके उच्चारण मात्र से हम सभी को प्रभु श्री राम के साथ-साथ हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है।

बाबा जी के दिशा निर्देशों के अनुसार हम सभी अपने जीवन की मोह माया से मुक्ति पा सकते हैं। यूं तो जब तक जीवन है तब तक माया से मुक्ति पाना संभव नहीं हो पता परंतु गृहस्थ जीवन में रहकर भी एक सन्यासी का जीवन जीना सहज हो सकता है यदि हम ईश्वर में अपने मन को रमाने का प्रयास करें और अपने कर्म पर ध्यान दे क्योंकि गीता में भी भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि कर्म ही प्रधान है। यदि हम बिना किसी लोभ के, बिना किसी आशा के, बिना ये सोचे कि यह पुण्य है या पाप केवल अपने मन में विचार करके अपने कर्मों को करते हैं तो हमारे कर्म फिर चाहे वह अच्छे हो या बुरे हमे नहीं बांधते। अगर हमने उन्हें पूर्ण विचार करके किया है तो वो कभी गलत नहीं हो सकते और ईश्वर हमारे कर्मों में हमको नहीं बंधता है क्योंकि हमारी उन कर्मों में स्पृहा नहीं है अर्थात हमारी उन कर्मों के फल के प्रति लालसा नहीं है। 

बाबा जी ने हम सभी को राम नाम रूपी एक मंत्र ऐसा दिया जिसके उच्चारण से हम सब अपने जीवन की समस्त बाधाओं से मुक्ति पा सकते हैं परंतु आज इस मंत्र के साथ-साथ हम आपको एक और मंत्र बताएंगे जिसका उच्चारण वेदों में किया गया है जिसके अनुसार हम कैसी भी अवस्था में क्यों न हो , कैसी भी बीमारी में हो पर यदि  सच्चे हृदय से हम इस मंत्र का उच्चारण करते हैं तो जीवन का कोई भी रोग हमारा कुछ नहीं कर सकता। इस मंत्र में ऐसी दिव्य शक्ति है जो हमारे वेदों में बताई  गई है। इस मंत्र को पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ जपना चाहिए।

रोग मुक्ति वैदिक मंत्र

"ॐ अच्युतानंद गोविंद नामोच्चारण भेषजात।

नश्यन्ति सकलारोगा: सत्यं सत्यं वदाम्यहम्।"

अर्थ:- भगवन हे अच्युत , हे अनंत , हे गोविन्द आपके इस नामोच्चारण रूप औषधि से समस्त रोग नष्ट हो जाते है। ये मैं सत्य कहता हूँ, सत्य कहता हूँ। 

यह एक दिव्य मंत्र है। इस मंत्र का उच्चारण करने से संसार का ऐसा कोई रोग नहीं जो नष्ट न हो जाये। इस मंत्र को जपने की एक विधि है, एक कला है जिसको जानने के पश्चात ही हमें इस वैदिक मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। 

सर्वप्रथम हमें इस मंत्र के प्रारंभ में लगे हुए ओमकार को ध्यान से देखना चाहिए और उसमें ध्यान लगाना चाहिए क्योंकि संसार का कोई भी मंत्र जो बिना ॐ के बोला जाता है वह उतना बलशाली नहीं हो पाता क्योंकि ईश्वर का स्वरूप ॐ है और जब हम ॐ लगाकर किसी मंत्र का उच्चारण करते हैं तो उस मंत्र की समस्त त्रुटिया समाप्त हो जाती हैं और उस मंत्र में ईश्वर का वास हो जाता है। अतः हम सब को यह ज्ञान होना चाहिए कि सनातन धर्म में बताए हुए समस्त मंत्रो के उच्चारण से पूर्व हमें ॐ का उच्चारण करना चाहिए ताकि हम उस मंत्र के उच्चारण में होने वाली त्रुटियों से बच सके और उस मंत्र को परमेश्वर की दिव्य शक्ति से ओत-प्रोत कर सकें। इस मंत्र के उच्चारण के पूर्व भी हमें ॐ का उच्चारण करना है। 

मंत्र उच्चारण की विधि 

जैसा कि आप सभी ने जाना कि इस मंत्र को उच्चारण करने से पूर्व हमें ॐ का उच्चारण करना है। उसके बाद आपको यह याद रखना है कि हमें कब और किस अवस्था में इस मंत्र का उच्चारण करना है। यदि आप किसी भी रोग से ग्रसित हैं और आपको कोई भी औषधि या दवाई खानी पड़ती है तो जब कभी भी आप कोई औषधि या दवाई खाएं तो उस औषधि या दवाई को खाने से पहले आपको इस दिव्य मंत्र का उच्चारण करना है और इस मंत्र का उच्चारण करने के पश्चात उस दवाई को खाना है।  यदि आप प्रत्येक बार दवाई को खाते समय इस मंत्र का उच्चारण करते हैं तो उस औषधि में इस मंत्र की दिव्या शक्ति समाहित होकर अआप्के रोगो का नाश करेगी और आप शनैः शनैः स्वस्थ होने लग जाएंगे। यदि ईश्वर की कृपा हुई तो इस मंत्र के प्रभाव से एक समय ऐसा भी आ जाएगा कि आपको औषधि लेने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी क्युकी आप पूर्णतया स्वस्थ होने लगेंगे।आपको यह जानकारी भी होनी चाहिए कि ये मंत्र केवल बीमार व्यक्तियों के लिए नहीं है अर्थात यदि आप पूर्णतया स्वस्थ हैं तो भी आपको इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए क्योंकि यदि कोई स्वस्थ प्राणी भी इस मंत्र का उच्चारण करता है तो भी उसे कभी कोई रोग होने की संभावना नहीं रहती।  इस मंत्र की इतनी दिव्य शक्ति है कि यह समस्त प्रकार के रोगो को नष्ट करके प्राणी को पूर्ण स्वस्थ रखने की क्षमता रखता है। ये मंत्र वेदों में बताया गया है अर्थात इस मंत्र में भगवान नारायण की दिव्यता और उनकी कृपा को दर्शाया गया है। भगवान नारायण का ही नाम अच्युत है अर्थात जो कभी च्युत नहीं होते। इसलिए भगवान नारायण की कृपा इस मंत्र में पूर्ण रूप से समाहित है। हम सभी को प्रतिदिन सुबह स्नान करने के पश्चात पूजा करते समय इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए जिससे हम अपने शरीर को पूर्णतया स्वस्थ रख सके और अपने जीवन में पूर्ण आनंद का अनुभव कर सकें।

मंत्र जप की संख्या 

इस मंत्र की सबसे बड़ी विशेषता है कि इस मंत्र को आप किसी भी अवस्था में जाप कर सकते हैं पर मैं यहां स्पष्ट कहना चाहता हूं की कोई भी मंत्र स्नान करने के पश्चात करते हैं तो आति शीघ्र फलदाई होता है परंतु यह मंत्र रोग मुक्ति के लिए है अतः रोगी किसी भी अवस्था में हो इस मंत्र का उच्चारण कर सकता है। यदि रोगी समर्थ नहीं है जप करने में तो रोगी के लिए इस मंत्र का जाप कोई अन्य व्यक्ति भी कर सकता है।  बस इस मंत्र का जाप करते समय जप करने वाले व्यक्ति को रोगी के सिर पर हाथ रखना होगा और इस मंत्र का उच्चारण करना होगा एक हाथ रोगी के सिर पर और एक हाथ उसके पेट पर रखकर इस मंत्र का जाप किया जा सकता है। यदि हम संख्या की बात करें तो कम से कम 11 बार, उससे अधिक 21 बार, या 108 बार जाप किया जा सकता है। अपनी क्षमता के अनुसार कोई भी साधक, कोई भी रोगी इस मंत्र का उच्चारण कर सकता है। बस मंत्र जाप करते समय भगवान के प्रति और इस मंत्र के प्रति पूर्ण श्रद्धा और आस्था का होना आवश्यक है तभी यह मंत्र फलदाई होगा। 

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