नीम करोली बाबा की सेवा का अवसर | Neem Karoli Baba Ki Seva Ka Avsar

श्री कैंची धाम में परम पूज्य नीम करोली बाबा जी के निवास के समय उनके सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में असंख्य भक्त बन गए और उनके उपदेशों का अनुसरण करते हुए उनसभी ने परम तत्व को प्राप्त किया। बहुत से भटके हुए भक्तों को बाबा की शरण में आ कर सद्मार्ग दिखाई पड़ा। 

नीम करोली बाबा की सेवा का अवसर

बहुत सारे भक्त उनकेअनुयाई बन गए और कुछ उनके आशीर्वाद का सहारा ले अपने कर्म को करते हुवे प्रगति के पथ पर अग्रसर हुवे परंतु आज हम आप सभी यह बताने जा रहे हैं कि उनके भक्त सिर्फ उनसे लेना ही नहीं चाहते थे बल्कि बाबा की करुणामय दृष्टि को पाने के लिए प्रत्येक भक्त में इच्छा होती थी कि वह किसी भी रूप में बाबा की सेवा कर सके। बाबा ने सदैव सिर्फ यही कहा कि राम नाम रूपी मंत्र का निरंतर जाप करते रहो। यही मेरी सच्ची सेवा है। फिर भी उनके भक्तो में बाबा की सेवा के प्रति उत्सुकता सदैव बनी ही रहती थी। बाबा के प्रत्येक भक्त स्वयं इस बात की प्रतीक्षा करते थे कि बाबा उन्हें किसी कार्य के संबंध में कोई आदेश दे और वे सभी बाबा की प्रसन्नता के लिए उस कार्य को कर सकें। 
जब भी बाबा एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते तो भक्तजन अपनी अपनी ओर से सेवा में उधत हो जाते । कोई उनकी ग़ाडी में पैट्रोल भरवाता तो कोई उनके साथ के भक्तों के लिये प्रथम श्रेणी के टिकट ख़रीदता । एक बार इलहाबाद के एक भक्त के मन में यही चाह पैदा हूई । जब बाबा इलहाबाद जाने के लिये उधत हूये तो वो इलाहबादी भक्त टिकटों के लिये रूपये जेब में रखकर उनके पीछे पीछे चलते रहे और संकोचवश पूछ नहीं पा रहे थे कि टिकट मैं ले आयूँ । अचानक बाबा उनकी ओर मुड़कर बोले," जेब में नोट लिये फिर रहा है , टिकट क्यों नहीं लाता ।" 

वो इलाहबादी भक्त हैरान होकर ख़ुशी से टिकट लेने भागे और सोच रहे बाबा तो अन्तर्यामी है , सब मन की जान लेते है । इस घटना से ये विदित होता है की बाबा सर्वयापी है , बाबा अन्तर्यामी है। उनसे कुछ नहीं छिपा है। इस कलयुग में बाबा साक्षात् भगवान् के जीवंत अवतार के रूप में प्रकट हुवे और आज तक अपनी समाधी के उपरान्त भी नीम करोली बाबा की कृपा सभी भक्तो पर निरंतर बरस रही है। 
आलौकिक यथार्थ

सारांश: 

आज की कथा से हम यह समझ सकते हैं कि बाबा की कृपा का कोई अंत नहीं है। बाबा अंतर्यामी थे। यही कारण है कि अपने भक्तों के मन की इच्छाओं को जानकर उसके अनुरूप ही बाबा अपने आदेश, अपने कार्य किया करते थे। जो भी भक्त उनके करीब आते चले जाते थे, बाबा उनके हृदय की हर इच्छा को पूरी कर उनपर अपनी करुणा बरसाने लगते थे। एक सच्चे संत की यही निशानी होती है कि वह अपने भक्तों में समा जाता है और उनके हृदय में नित्य निवास करने लगता है। 

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