वेद, विश्व के सबसे पुराने लिखित धार्मिक दार्शनिक ग्रंथ हैं। वेद शब्द संस्कृत भाषा के 'विद' शब्द से बना है, जिसका मतलब है 'ज्ञान'। वेद, वैदिक साहित्य में सबसे महत्वपूर्ण हैं। 1500 और 500 ईसा पूर्व के बीच वैदिक संस्कृत में रचित, वेद हिंदू धर्म के सबसे पुराने ग्रंथ हैं। वेद क्या है ? वेद चार हैं: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद। वेदों में देवता, ब्रह्मांड, ज्योतिष, गणित, औषधि, विज्ञान, भूगोल, धर्म, संगीत, रीति-रिवाज आदि जैसे कई विषयों का ज्ञान वर्णित है। वेद इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसे किसी मनुष्य द्वारा नहीं बल्कि ईश्वर द्वारा ऋषियों को सुने ज्ञान के आधार पर लिखा गया है. इसलिए भी वेद को 'श्रुति' कहा जाता है। वेदों को चार प्रमुख ग्रंथों में विभाजित किया गया है और इसमें भजन, पौराणिक वृत्तांत, प्रार्थनाएं, कविताएं और सूत्र शामिल हैं। वेदों के समग्र भाग को मन्त्रसंहिता, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद के रूप में भी जाना जाता है। इनमें प्रयुक्त भाषा वैदिक संस्कृत कहलाती है जो लौकिक संस्कृत से कुछ अलग है। वेदों के संपूर्ण ज्ञान को महर्षि कृष्ण द्वैपाय
नीम करोली बाबा के समकालीन संत लाहरी महाशय और श्री राम ठाकुर की कथा
एक बार लाहड़ी महासय के घर वाराणसी मे एक ब्राह्मण भक्त जो श्री लाहड़ी जी के भक्त थे जो लाहड़ी महासय पास में बैठे थे। वहां एक निम्न जाति का जल भरने का काम करने वाला व्यक्ति भी महाशय के पास आता था। जो आज महासय के सामने बैठ गया। ब्राह्मण जी को यह बात सही नही लगी और उन्होंने उसे डांटते हुए पीछे बैठने को कहा।इस पर श्री लाहड़ी जी ने साधना से उठ कर अपना स्थान छोड़ कर ब्राह्मण जी को गुस्से से देखा। साथ ही उस निम्न जाति के व्यक्ति से कहा तुम हमारे स्थान पर बैठो। हम नीचे बैठ जायेंगे।व्यक्ति ने सोचा कि लाहड़ी जी नाराज हो गए और वे मजाक में हमे ऐसा करने को कह रहे है। वह क्षमा मांगने लगा। किन्तु लाहड़ी जी ने उसे कहा हम चाहते है कि तुम्हे उच्च स्थान मिले। ताकि आगे से तुम्हारा कोई अपमान न करे। जाओ बैठो। सभी को लाहड़ी जी की बात समझ में आगई।
एक बार संत श्री राम ठाकुर के आश्रम में सत्संग चल रहा था । बाहर एक मुस्लिम प्रसाद लिए खड़ा था। श्री राम ठाकुर के एक भक्त ने उससे पूछा यहां क्या कर रहे हो।अंदर चलो वह बोला वह मुस्लिम है ठाकुर को प्रसाद भेंट करना चाहता है। आप यह बाबा तक पहुचा दें। ठाकुर जी के भक्त ने प्रसाद लिया और अंदर ले गए। जब वह दोनों अंदर गए तो ठाकुर जी ने बड़े प्रेम से प्रसाद ग्रहण किया और उस मुस्लिम भक्त से सभी के सामने पूछा । तुम मेरे लिए इतने भाव से प्रसाद लाये हो। तुम्हारे ख्वाजा मौलवी क्या कहे गे वो डांटे गे। तो वह बोला खुदा सब जानते है, आप से भी कुछ छिपा नही। हमे किसी का डर नही। बस बात सिर्फ इतनी ही है की भक्ति सिर्फ सरल हृदय और भेद भाव रहित व्यक्ति ही कर सकता है। बाकी दिखावा तो हर एक व्यक्ति कर सकता है।
एक बार संत श्री राम ठाकुर के आश्रम में सत्संग चल रहा था । बाहर एक मुस्लिम प्रसाद लिए खड़ा था। श्री राम ठाकुर के एक भक्त ने उससे पूछा यहां क्या कर रहे हो।अंदर चलो वह बोला वह मुस्लिम है ठाकुर को प्रसाद भेंट करना चाहता है। आप यह बाबा तक पहुचा दें। ठाकुर जी के भक्त ने प्रसाद लिया और अंदर ले गए। जब वह दोनों अंदर गए तो ठाकुर जी ने बड़े प्रेम से प्रसाद ग्रहण किया और उस मुस्लिम भक्त से सभी के सामने पूछा । तुम मेरे लिए इतने भाव से प्रसाद लाये हो। तुम्हारे ख्वाजा मौलवी क्या कहे गे वो डांटे गे। तो वह बोला खुदा सब जानते है, आप से भी कुछ छिपा नही। हमे किसी का डर नही। बस बात सिर्फ इतनी ही है की भक्ति सिर्फ सरल हृदय और भेद भाव रहित व्यक्ति ही कर सकता है। बाकी दिखावा तो हर एक व्यक्ति कर सकता है।
निष्कर्ष:
इन दोनों ही दिव्य घटनाओं से यह साबित होता है कि दिव्य विभूति या दिव्य संत कभी भी आमजन में भेदभाव नहीं करते। उनके लिए प्रत्येक प्राणी, प्रत्येक साधक समान भाव का होता है और वह अपनी करुणा प्रत्येक प्राणी पर समान भाव से वितरित करते रहते हैं और सबका कल्याण करते हैं।
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