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शुक्रवार का देवता कौन है? शुक्रवार का मंत्र क्या है?

शुक्रवार का दिन देवी महालक्ष्मी और शुक्र देव का दिन माना जाता है। शुक्रवार को मां लक्ष्मी की पूजा करने से जीवन में सुख-सुविधा की कमी नहीं रहती। साथ ही, शुक्र ग्रह की शुभता से सौंदर्य में निखार, ऐश्वर्य, कीर्ति और धन-दौलत प्राप्त होती है। Shukrawar ( Friday) Ka Devta शुक्रवार को मां संतोषी की पूजा और व्रत भी किया जाता है। हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, मां संतोषी को भगवान श्री गणेश की पुत्री माना जाता है। मान्यता है कि मां संतोषी की पूजा करने से साधक के जीवन में आ रही तमाम तरह की समस्याएं दूर होती हैं और उसे सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही, जिन्हें संतान सुख प्राप्त नहीं हो पा रहा वो संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को करते हैं। शुक्रवार को वैभव लक्ष्मी व्रत भी रखा जाता है. हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, माता वैभव लक्ष्मी से सुख-समृद्धि और धन-धान्य का आशीर्वाद पाने के लिए शुक्रवार का व्रत सबसे उत्तम उपाय है।  शुक्रवार का नाम शुक्र देवता के नाम पर ही पड़ा है। नॉर्स पौराणिक कथाओं में फ्रिग ओडिन की पत्नी हैं। उन्हें विवाह की देवी माना जाता था। शुक्रवार को किसका व्रत करना चाहिए?

Hanuman Ji Ka Adbhut Bal | हनुमानजी का अद्भुत बल

हनुमानजी का अद्भुत बल

यह पुरानी घटना त्रेता युग की है जब भगवान श्री राम और असुर राज रावण के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था। श्रीराम का पराक्रम देखने के बाद रावण को जब यह महसूस हुआ कि वह श्रीराम से जीत ना सकेगा तब उसने मायावी अमर राक्षसों के एक दल को बुलाया जिनकी संख्या लगभग 1000 रही होगी।  
रावण ने उस राक्षस दल को आदेश दिया कि तुम सब जाओ और राम की सेना से युद्ध करो और उन्हें परास्त करो। रावण द्वारा अमर राक्षसों को भेजने की बात जब विभीषण को ज्ञात हुई तो विभीषण जी ने रावण की मायावी सेना और उसके राक्षसों की जानकारी भगवान श्रीराम तक पहुंचाई। 
भगवान श्री राम के साथ ही साथ वानर राज सुग्रीव और समस्त वानर सेना को अमर राक्षसों के बारे में पता चला और वे सब चिंतित हो उठे क्योंकि इन अमर राक्षसों से कब तक युद्ध करना उन सबके लिए संभव होगा क्योंकि ये तो कभी मरेंगे ही नहीं और जब मरेंगे नहीं तो इन को हराना असंभव होगा। समस्त वानर सेना के हृदय में केवल एक ही बात चल रही थी कि हम लंबे समय तक युद्ध करने के पश्चात भी जीत नहीं पाएंगे। 
जब पवन पुत्र हनुमान ने भगवान श्रीराम को चिंतित देखा तो हनुमान जी ने भगवान श्रीराम से उनकी चिंता का कारण पूछा। भगवान श्री राम की आज्ञा से रावण के छोटे भाई विभीषण जी ने अमर राक्षसों की सारी कथा कह सुनाई जिसको सुनने के बाद हनुमान जी ने श्रीराम से कहा कि प्रभु आप तनिक भी चिंता ना करें। इन अमर राक्षसों को इनके उचित स्थान पर मैं अवश्य पहुंचा दूंगा। 
श्री राम ने कहा हे हनुमान ये तो अमर हैं उनकी मृत्यु नहीं हो सकती फिर तुम उन्हें जीतोगे कैसे? यह तो असंभव सा लगता है पर हनुमान जी ने कहा प्रभु असंभव नाम का शब्द मेरे शब्दकोश में नहीं। मेरे लिए संसार में कुछ भी असंभव नहीं। सब आपकी कृपा का प्रताप है। आपके नाम लेते ही मेरे अंदर वह बल आ जाता है जिस बल के सामने संसार कि कोई भी आसुरी शक्ति नहीं टिकसकती। आप चिंता ना करें केवल मुझे आदेश दे। मैं आपको दिखाता हूं कि इन दुष्टों की दुष्टता का क्या परिणाम होता है। 
प्रभु श्री राम ने आज्ञा दी और हनुमान जी उन समस्त असुरो का नाश करने के लिए आगे बढ़े। हनुमानजी को भूमि में देखकर वे सारे अमर राक्षस व्याकुल हो उठे।  उन्होंने पूछा तुम कौन हो तब हनुमान जी ने कहा कि मैं केसरी नंदन हनुमान हूं। हनुमान का नाम सुनते ही वे समस्त राक्षस भयभीत हुए क्योंकि रणभूमि में आने से पूर्व राक्षस राज रावण ने हनुमान का नाम लेकर उन सबको चेताया था। अतः उन समस्त राक्षसों ने हनुमान से कहा कि हम सब अमर हैं। तुम हमें कभी परास्त नहीं कर सकते। अतः यहां से लौट जाओ अन्यथा मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे। 
उन मूर्खों की बात सुनकर हनुमानजी मुस्कुराए और बोले यह तो समय बताएगा कौन किसको मारेगा। अतः वह सारे राक्षस हनुमान जी से युद्ध करने लगे। हनुमान जी ने मारते-मारते समस्त राक्षसों को अधमरा कर दिया और एक के ऊपर एक ढेर लगते चले गए। जब आधे से ज्यादा सेना का नाश हो गया तब अंत में कुछ-कुछ ही राक्षस शेष बचे थे तब आवाज आई कि हम सब अमर हैं तुम हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकोगे। तब हनुमानजी ने कहा तुम सब अमर अवश्य हो पर मेरे बल को तुम नहीं जानते। 
श्री राम के नाम की शक्ति को तुम नहीं जानते। तुम सब एक साथ मुझ पर प्रहार करो मैं तुमसे एक साथ ही युद्ध करूंगा। जब उन समस्त अमर राक्षसों ने हनुमान जी के ऊपर एक साथ प्रहार किया तब हनुमानजी ने अपनी पूछ में लपेटकर उन समस्त राक्षसों को पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण की शक्ति से ऊपर आकाशगंगा की तरफ फेक दिया जिस कारण वे समस्त राक्षस ऊपर के ऊपर ही रह गए। कोई भी नीचे ना आ सका। इस प्रकार हनुमान जी ने अमर राक्षसों का अंत कर दिया और भगवान श्री राम के युद्ध की चिंता को जड़ से मिटा दिया। 
अमर राक्षसों की सेना का नाश करने के पश्चात जब हनुमान जी महाराज प्रभु श्री राम के पास वापस लौटे तो उन्होंने जाकर उनके चरणों में शीश झुकाया और प्रभु को प्रणाम करते हुए अमर राक्षसों के अंत की सारी कथा कह सुनाई। अमर राक्षसों की समस्या से छुटकारा पाने की बात सुनते ही प्रभु श्री राम का रोम-रोम रोमांचित हो उठा। 
उन्होंने हनुमान जी को अपने गले से लगा लिया और कहा पुत्र तुमने आज बहुत बड़ा उपकार किया है। आज मैं तुम्हें अविरल भक्ति का आशीर्वाद प्रदान करता हूं। तुमने मुझ पर जो उपकार किया है उसका बदला मैं कभी नहीं चुका सकता क्योंकि किसी के उपकार का बदला केवल संकट के समय ही चुकाया जा सकता है। भगवान श्री राम ने हनुमान जी को पुत्र कहकर संबोधित करते हुए कहा कि तुम पर कभी कोई विपत्ति, कोई विपदा, कोई संकट ना आए। तुम सदा भक्ति की पराकाष्ठा के रूप में प्रतिष्ठित रहो। भगवान श्रीराम से वरदान रुपी आशीर्वाद को पाकर हनुमान जी पुलकित  हो उठे और उनके चरणों में गिर पड़े। 
भगवान श्रीराम ने हनुमान जी की वीरता का बखान करते हुए यहां तक कह दिया कि हनुमानजी की वीरता के सामने काल, इंद्र, कुबेर यहां तक कि स्वयं नारायण की वीरता का बखान भी कभी संसार में नहीं सुना गया। 

न कालस्य न शक्रस्य न विष्णो र्वित्तपस्य च ! कर्माणि तानि श्रूयन्ते यानि युद्धे हनूमतः !!-

वाल्मीकिरामायण उत्तर कांड १५/८

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