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शुक्रवार का देवता कौन है? शुक्रवार का मंत्र क्या है?

शुक्रवार का दिन देवी महालक्ष्मी और शुक्र देव का दिन माना जाता है। शुक्रवार को मां लक्ष्मी की पूजा करने से जीवन में सुख-सुविधा की कमी नहीं रहती। साथ ही, शुक्र ग्रह की शुभता से सौंदर्य में निखार, ऐश्वर्य, कीर्ति और धन-दौलत प्राप्त होती है। Shukrawar ( Friday) Ka Devta शुक्रवार को मां संतोषी की पूजा और व्रत भी किया जाता है। हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, मां संतोषी को भगवान श्री गणेश की पुत्री माना जाता है। मान्यता है कि मां संतोषी की पूजा करने से साधक के जीवन में आ रही तमाम तरह की समस्याएं दूर होती हैं और उसे सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही, जिन्हें संतान सुख प्राप्त नहीं हो पा रहा वो संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को करते हैं। शुक्रवार को वैभव लक्ष्मी व्रत भी रखा जाता है. हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, माता वैभव लक्ष्मी से सुख-समृद्धि और धन-धान्य का आशीर्वाद पाने के लिए शुक्रवार का व्रत सबसे उत्तम उपाय है।  शुक्रवार का नाम शुक्र देवता के नाम पर ही पड़ा है। नॉर्स पौराणिक कथाओं में फ्रिग ओडिन की पत्नी हैं। उन्हें विवाह की देवी माना जाता था। शुक्रवार को किसका व्रत करना चाहिए?

10 बिंदुओं से समझे हनुमान जी को | हनुमान गाथा रहस्य

प्रिय भक्तों, आज हम आप सभी के समक्ष भक्त शिरोमणि श्री हनुमान जी महाराज के जीवन से जुड़े हुए कुछ ऐसे रहस्य से पर्दा उठाएंगे जिनके बारे में विस्तार से शास्त्रों में बताया गया है। 

10 बिंदुओं में सम्पूर्ण हनुमान गाथा

हनुमान जी महाराज भगवान शिव के 11 वें रुद्र अवतार होने के साथ ही साथ भक्तों की श्रेणी में परम पूज्य हैं और सर्वप्रथम उन्हीं का नाम लिया भी जाता है क्योंकि भक्ति की जो पराकाष्ठा शिव अवतार हनुमान ने प्रस्तुत की वैसा उदाहरण आज तक संसार में कोई प्रस्तुत न कर सका। 

1. हनुमानजी का जन्म स्थान :

हनुमान जी के जन्म स्थान के विषय में भक्तों में काफी मतभेद हैं और इन्ही मतभेदों के बीच में तीन स्थान मुख्य रूप से प्रकट होते हैं जिन स्थानों पर हनुमान जी के जन्म स्थान होने का दावा किया जाता है। 
पहला स्थान हम्पी में है। ऐसा माना जाता है कि हम्पी में शबरी के गुरु मतंग ऋषि के आश्रम में हनुमान जी का जन्म हुआ था
कुछ लोगों का मानना है कि हनुमान जी का जन्म हरियाणा के कैथल में हुआ था।  कैथल का ही पौराणिक नाम कपिस्थल था अर्थात यहां के राजा हनुमान जी के पिता महाराज केसरी थे क्योंकि वह कापियों के राजा थे इसलिए उन्हें कपीश्वर भी कहा  और कापियों का प्रमुख माना जाता था। 
इन सब से बिल्कुल अलग हटकर कुछ भक्तों का यह भी मानना है कि हनुमान जी का जन्म नासिक के अंजनेरी पर्वत पर हुआ था। इस पर्वत पर हनुमान जी के साथ उनकी माता अंजनी का मंदिर विद्यमान है जो कि भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। श्रीराम के जन्म के पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था। प्रभु श्रीराम का जन्म 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में हुआ था। हनुमान का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पूर्णिमा के दिन हुआ था।

2. चिरंजीवी हनुमान :

हनुमान जी भगवान शिव के 11 वे रुद्र अवतार हैं। भगवान श्री राम की सेवा करने के लिए भगवान शिव ने हनुमान जी का रूप धारण किया था। हनुमान जी को माता सीता से चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त हुआ था। भगवान श्रीराम ने अयोध्या से साकेत धाम जाते समय हनुमान जी को यह आदेश दिया था कि कल्प के अंत तक तुम इसी धरती पर निवास करोगे और धर्म का प्रचार प्रसार करते रहोगे। 
रामायण, रामचरितमानस, वाल्मीकि और तुलसीदास समस्त प्रमुख ग्रंथों, प्रमुख संतो  की बात माने तो हनुमान जी अजर-अमर है अर्थात वह चिरंजीवी हैं और अगर दूसरे दृष्टिकोण से देखें तो वह भगवान शिव के 11 वे रुद्र अवतार हैं। जो स्वयं शिव के अवतार हैं भला उनकी मृत्यु कैसे हो सकती है। 

3.कपि नामक वानर :

हनुमान जी वानर राज केसरी के पुत्र थे। वनराज केसरी को कपीश्वर कहा जाता था क्योंकि वह समस्त कपियो के राजा थे। संसार में वानरों की जितनी भी जातियां थी  उनमे  जो जाति सर्वोच्च पद पर थी उसका नाम कपि था और वानर राज केसरी उन समस्त कपियो के राजा थे और उन्हीं के पुत्र होने के कारण हनुमान जी को भी कपीश्वर कहा गया। 
हनुमानजी भी उन्हीं की जाति में जन्म लिया था जिस कारण उन्हें भी कपि के नाम से जाना गया। 

4. हनुमान परिवार :

अगर हनुमान जी के परिवार की बात करें तो हनुमान जी के पिता बंदरों की सर्वोच्च जाति कपियो के राजा थे और उनका नाम केसरी था। जबकि हनुमान जी की माता अंजनी अपने पूर्व जन्म में एक अप्सरा थीं जिन्हें श्राप धरती पर जन्म लेना पड़ा था। हनुमान जी के अतिरिक्त उनके और  पांच भाई थे जिनमें हनुमान जी सबसे बड़े थे। उनके पांचो भाइयों के नाम इस प्रकार हैं मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान, धृतिमान।
महाराज केसरी और अंजना को पुत्र रत्न की प्राप्ति पवन देव की कृपा से हुई थी इसलिए हनुमान जी को पवन पुत्र के नाम से भी संसार में जाना जाता है। भगवान शिव के 11 वे रुद्र अवतार होने के कारण उन्हें शिव अवतार के नाम से भी जाना जाता है। 
यूं तो हनुमान जी को ब्रह्मचारी माना गया है परंतु कहीं-कहीं पर उन्हें विवाहित भी बताया गया है। जैसे पराशर संहिता की माने तो उन्हें सूर्य देव से शिक्षा ग्रहण करने के लिए  उनको अपने गुरु की आज्ञा से सुवर्चला नामक स्त्री से विवाह करना पड़ा। तत्पश्चात ही सूर्यदेव ने उन्हें विद्या दान दिया था। 
लंका कांड की माने तो जब हनुमान जी ने लंका दहन किया तब अपनी पूछ की आग बुझाने के लिए उन्होंने समुद्र में डुबकी लगाई और उनके शरीर से टपकते हुए पसीने को एक मछली ने पी लिया और उस पसीने की बूंद से वह मछली गर्भवती हो गई जिसके कारण उस मछली के पेट से एक बालक उत्पन्न हुआ जिसका नाम मकरध्वज था और वह हनुमान जी का ही पुत्र था क्योंकि वह उन्हीं के अंश से उत्पन्न हुआ था। 

5. बाधा मुक्ति :

भक्त शिरोमणि हनुमान जी परम दयालु स्वभाव के हैं। वह अपने भक्तों पर अपनी दया दृष्टि सदैव बनाए रखते हैं। हम लोगों ने हनुमान चालीसा में सदैव पड़ा होगा कि "भूत पिशाच निकट नहीं आवे, महावीर जब नाम सुनावे" क्योंकि हनुमान जी का ही एक नाम महावीर भी है अर्थात हनुमान जी के नाम जप करने से भूत पिचास की बाधाओं से प्राणी को मुक्ति मिलती है। हनुमान जी कर्ज से मुक्ति दिलाते हैं। 
समस्त प्रकार के रोग और शोक से भी मुक्ति हनुमान चालीसा का पाठ प्रदान करता है। अगर शास्त्रों की माने तो हनुमान जी के स्मरण मात्र से अनेको ग्रह बाधाएं दूर हो जाती हैं। 
अगर पूर्ण विधि-विधान के अनुसार हनुमान जी का पाठ अर्थात हनुमान चालीसा का पाठ किया जाए, उनका हनुमान अष्टक पढ़ा जाए, बजरंग बाण पढ़ा जाए, सुंदरकांड इत्यादि पढ़ा जाए तो कोर्ट-कचहरी संबंधित व्यवधान दूर हो जाते हैं। अनेक प्रकार के मंगल दोष दूर हो जाते हैं। शत्रुओं की बाधाएं दूर होती हैं और हनुमान जी का सुरक्षा कवच समस्त साधकों को प्राप्त होता है। 
हम सभी को सदैव हनुमान जी की शरण में रहना चाहिए क्योंकि हनुमान जी की शरण में रहने से केवल सांसारिक बाधाएं ही दूर नहीं होती अपितु हमें श्रीराम का सानिध्य भी प्राप्त होता है। 

6. बलशाली हनुमान का पराक्रम :

हनुमान जी भगवान शिव के 11 रुद्र अवतार थे। यही कारण है कि उनमे वे सब  शक्तियां विद्यमान थी जो स्वयं महादेव में विद्यमान हैं। हनुमान जी ने अपने बल और अपने पराक्रम का परचम अपने बाल्यकाल से ही समस्त संसार को दिखा दिया था। पालने में झूलते समय सूर्य को फल समझकर खाने की इच्छा मात्र से पालने में झूलते-झूलते ही आकाश में उड़ गए और उन्होंने सूर्य को फल समझकर अपने मुख में रख लिया। 
जब वे बड़े हुए तब माता सीता की खोज के लिए श्री राम जी ने उनको कार्यभार सौंपा तब उन्होंने १०० योजन का समुद्र पार कर दिया जो कि एक साधारण मानव और वानर के लिए असंभव था। 
लंका पहुंचते ही उन्होंने लंका की रक्षक लंकिनी सहित अनेकों राक्षसों का वध कर दिया। उन्होंने अशोक वाटिका को उजाड़कर माता सीता को भगवान श्री राम की  अंगूठी भेट करके उन्हें दिलासा दिया। तत्पश्चात उन्होंने अक्षय कुमार का वध करके रावण के हृदय में भय उत्पन्न कर दिया। 
जब मेघनाथ और लक्ष्मण का भीषण युद्ध हुआ और लक्ष्मण जी मूर्छित पड़े तब हिमालय से संजीवनी बूटी का पर्वत लाकर उन्होंने लक्ष्मण के प्राण बचाए। तत्पश्चात वापस उस पर्वत को उठा कर उसी के स्थान पर हिमालय में पुनः स्थित कर दिया। जब रावण का भाई अहिरावण छल से राम और लक्ष्मण को पाताल ले गया और उनकी बलि देने वाला था तब राम और लक्ष्मण के प्राण बचाने के लिए हनुमान जी ने अहिरावण का वध करके उसे पाताल में गाड़ दिया। 
समय-समय पर हनुमान जी ने अपनी शक्ति और अपनी विद्वता का परिचय दिया और अनेकों निशाचरो का अंत किया। इतना ही नहीं हनुमान जी ने समय-समय पर गरुड़, भीम, सत्यभामा, सुदर्शन चक्र  आदि का घमंड तोड़ कर उनको भगवान् की शक्ति का परिचय दिया था। 

7. हनुमाजी पर लिखे गए ग्रंथ :

त्रेतायुग से अब तक अनगिनत ग्रंथ अनेकों विद्वानों के द्वारा हनुमान जी को समर्पित करके लिखे गए है जिनमे सबसे बड़ा योगदान श्री तुलसीदास जी का माना जाता है क्योंकि तुलसीदास जी ने हनुमान जी के ऊपर, हनुमान चालीसा, हनुमान अष्टक, हनुमान साठिका, बजरंग बाण इत्यादि अनेकों मंत्री और स्तोत्रो की रचना की है।
इसके अलावा रावण के छोटे भाई विभीषण जी ने हनुमान जी को समर्पित कर के हनुमान वडवानल स्तोत्र की रचना की। 
आनंद रामायण में हनुमान जी के अनोको नामो का संग्रह मिलता है जिसके जाप से सिद्धि प्राप्त होती है। 
हनुमान जी के भक्त समर्थ रामदास जी ने भी अपनी रचना मारुति स्तोत्र हनुमान जी को समर्पित किया।
इन सबके अलावा भी अनेकों भक्तो ने हनुमान जी को समर्पित कर अनेकों ग्रंथ और भजन रचनाएं लिखी है। गुरु गोरखनाथ ने हनुमान जी समर्पित करते हुवे उन पर साबर मं‍त्र की रचना की।

8. वैष्णो देवी के सेवक हनुमानजी :

माता वैष्णो के सेवक के रूप में हनुमान जी महाराज को जाना जाता है। यही कारण है की जब माता वैष्णो देवी में विराजमान हुवि तब हनुमान जी की प्रार्थना पर माता ने एक तीर मारकर बाडगंगा उत्पन्न कर दी जो आज भी माता वैष्णो के दर्शन को आने वाले अनगिनत भक्तो की प्यास बुझा रही हो।
माता के प्रत्येक मंदिर में हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित होती है। जिस प्रकार माता के मंदिरों में भैरव जी का महत्व है उसी प्रकार हनुमान जी का भी महत्व है क्योंकि भैरव जी और हनुमान जी ये दोनो ही भगवान शिव के स्वरूप है। 

9. अतुलित बालधाम हनुमानजी :

हनुमान जी भगवान शिव के अवतार है इसलिए उनके अंदर भगवान शिव की समस्त शक्तियां विद्यमान है। बाल्यकाल में जब उन्होंने सूर्य को अपने मुख में रख लिया था और देवताओं के आग्रह पर जब सूर्य को मुक्त किया तब समस्त देवताओं ने अपनी शक्तियों का वरदान हनुमान जी को दिया था। 
जैसे ब्रह्मा जी ने वरदान दिया की ब्रह्मास्त्र का तुम पर कोई प्रभाव नहीं होगा। इंद्र ने वरदान दिया की वज्र भी तुम पर कोई प्रभाव नहीं दिखा सकेगा। वरुण देवता ने वरदान दिया की तुम जल पर चल सकोगे। जल के अंदर चल सकोगे। जल तुमको कभी भिंकिसी भी प्रकार की हानी नही पहुंचा सकेगा। अग्नि देवता ने सदैव अग्नि से सुरक्षित होने का वरदान दिया। हनुमान जी के नाम से समस्त भूत, प्रेत, निशाचर आदि थर थर कापते है। अतः हम कह सकते है की संसार की कोई भी आसुरी शक्ति हनुमान जी के बाल और पराक्रम के आगे नहीं टिक सकती।

10. हनुमान जी के साक्षात दर्शन :

संत माध्वाचार्य, संत तुलसीदास, संत रामदास, राघवेन्द्र स्वामी और स्वामी रामदास जी ने हनुमान जी को देखने का दावा किया था। हनुमानजी त्रेता में श्रीराम, द्वापर में श्रीकृष्ण और अर्जुन और कलिकाल में रामभक्तों की सहायता करने के लिए इस धरती पर निवास करते है।

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