Neem Karoli Baba Aur Rog Mukti Vaidik Mantra प्रिय भक्तों आज हम आप सभी को ऐसे मंत्र के बारे में बताएंगे जिसका उच्चारण करके आप सभी रोगों से मुक्ति पा सकते हैं। हम सभी के जीवन में अनेकों अनेक रोग कभी न कभी आ ही जाते हैं जिनकी वजह से हम सभी का जीवन हस्त व्यस्त हो जाता है। परम पूज्य श्री नीम करोली बाबा की कृपा से और हनुमान जी के आशीर्वाद से हम सभी को बाबा जी का सानिध्य प्राप्त हुआ और बाबा जी के सानिध्य में रहकर हम सभी ने राम नाम रूपी मंत्र को जाना जिसके उच्चारण मात्र से हम सभी को प्रभु श्री राम के साथ-साथ हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है। बाबा जी के दिशा निर्देशों के अनुसार हम सभी अपने जीवन की मोह माया से मुक्ति पा सकते हैं। यूं तो जब तक जीवन है तब तक माया से मुक्ति पाना संभव नहीं हो पता परंतु गृहस्थ जीवन में रहकर भी एक सन्यासी का जीवन जीना सहज हो सकता है यदि हम ईश्वर में अपने मन को रमाने का प्रयास करें और अपने कर्म पर ध्यान दे क्योंकि गीता में भी भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि कर्म ही प्रधान है। यदि हम बिना किसी लोभ के, बिना किसी आशा के, बिना ये सोचे कि यह पुण्य है या पाप केवल ...
प्रिय भक्तों जय श्री राम। संपूर्ण भारतवर्ष मेंआज सनातन धर्म में 33 कोटि देवताओं की पूजा होती है। उन 33 कोटि देवताओं में भी भगवान के अनेक अवतार आज तक इस पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं जिनमें से भगवान शिव का भी एक अवतार है जिसे हम पवन पुत्र श्री हनुमान जी महाराज के रूप में जानते हैं। भगवान शिव का यह अवतार भगवान विष्णु के श्री राम स्वरूप की पूजा अर्चना और वंदन करता है। हनुमान जी का यह स्वरूप हमें दास्य भाव की भक्तिसे परिपूर्ण करता है।
आज हम हनुमान जी को ही समर्पित सुंदरकांड के दिव्य महत्व के बारे में जानेंगे जिसको महाकवि तुलसीदास जी ने अपनी रचना रामचरितमानस में संकलित किया। हम सब श्री तुलसीदास जी के ऋणी हैं कि उन्होंने हनुमान जी की पावन गाथा जो भगवान श्री राम और माता सीता से संबंधित है, उसे इतने सुंदर रूप में चित्रित कर उसकी इतनी विस्तृत व्याख्या की और हम सब के समक्ष प्रस्तुत किया जिससे मानव जाति का कल्याण हो सके।
IMPORTANCE OF SUNDARKAND
हिंदूधर्म के पूज्य ग्रंथ श्रीरामचरितमानस में रामकथा विस्तार से वर्णित की गई है। इसके सात खंडों में सुंदरकांड का महत्त्व सर्वाधिक माना गया है। सुंदरकांड के प्रति लोगों का अधिक आकर्षण होने का मुख्य कारण यह है कि यह समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। इसीलिए आपने देखा होगा कि पूरी रामायण का पाठ कराने की अपेक्षा अधिकांश श्रद्धालु शुभअवसरों पर सुंदरकांड का ही पाठ कराते रहते हैं। सुंदरकांड के अंतिम दोहे में कहा गया है-सकल सुमंगलदायक, रघुनायक गुन गान ।
सादर सुनहिं ते तरहिं भवसिंधु बिना जलजान ॥
- श्रीरामचरितमानस / सुंदरकांड 60
अर्थात् श्री रघुनाथजी का गुणगान संपूर्ण सुंदर मंगलों का यानी सभी लौकिक एवं पारलौकिक मंगलों को देने वाला है, जो इसे आदरसहित सुनेंगे, वे बिना किसी अन्य साधन के ही भवसागर को तर जाएंगे। श्रीरामचरितमानस के सात कांडों को सात मोक्षपुरी यथा-अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, कांची, अवंतिकापुरी, द्वारावती के रूप में बताया गया है। सुंदरकांड पांचवी मोक्षपुरी कांची है, जिसके दो भाग हैं- शिवकांची व विष्णुकांची ।
सुंदरकांड श्रीरामचरितमानसरूप भगवान् श्रीराम के शब्दविग्रह की सुंदर ग्रीवा (गर्दन/ गला) है। सुंदरकांड में तीन श्लोक, छह छंद, साठ दोहे तथा पांच सौ छब्बीस चौपाइयां हैं। साठ दोहों में से प्रथम तीस दोहों में रुद्रावतार श्री हनुमान् जी के चरित्र तथा तीस दोहों में विष्णुस्वरूप श्री राम के गुणों का वर्णन है। 'सुंदर' शब्द इस कांड में चौबीस चौपाइयों में आया है। सुंदरकांड के नायक रुद्रावतार श्रीहनुमान् हैं। अशांत मन वालों को शांति मिलने की अनेक कथाएं इसमें वर्णित हैं।
सुन्दरकाण्ड की कथा - हनुमानजी की लंका यात्रा
इसमें रामदूत श्रीहनुमान् के बल, बुद्धि और विवेक का बड़ा ही सुंदर वर्णन है। एक ओर श्रीराम की कृपा पाकर हनुमान् जी अथाहसागर को एक ही छलांग में पार करके लंका पहुंच जाते हैं, तो दूसरी ओर बड़ी कुशलता से लंकिनी पर प्रहार करके लंका में प्रवेश भी पा लेते हैं। बालब्रह्मचारी हनुमान् ने विरह-विदग्धा मां सीता को श्रीराम के विरह का वर्णन इतने भावपूर्ण शब्दों में सुनाया है कि स्वयं सीता अपने विरह को भूलकर राम की विरह-वेदना में डूब जाती हैं। इसी कांड में विभीषण को भेदनीति, रावण को भेद और दंडनीति तथा भगवत्कृपा प्राप्ति का मंत्र भी हनुमान जी ने दिया है। अंततः पवनसुत ने सीताजी का आशीर्वाद तो प्राप्त किया ही है, रामकाज को पूरा करके प्रभु श्रीराम को भी विरह से मुक्त किया है और उन्हें युद्ध के लिए प्रेरित भी किया है। इस प्रकार सुंदरकांड नाम के साथ-साथ इसकी कथा भी अति सुंदर है। 'आध्यात्मिक अर्थों में इस कांड की कथा के बड़े गंभीर और साधनामार्ग के उत्कृष्ट निर्देशन हैं। अतः सुंदरकांड आधिभौतिक, आध्यात्मिक एवं आधिदैविक सभी दृष्टियों से बड़ा ही मनोहारी कांड है।
सुन्दरकाण्ड के पाठ का महत्व एवं लाभ
सुंदरकांड के पाठ को अमोघ-अनुष्ठान माना जाता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि सुंदरकांड का पाठ करने से दरिद्रता एवं दुःखों का दहन, अमंगलों, संकटों का निवारण तथा गृहस्थजीवन में सभी सुखों की प्राप्ति होती है। पूर्णलाभ प्राप्त करने के लिए भगवान में पूर्ण श्रद्धा और विश्वास का होना जरूरी है।
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