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नीम करोली बाबा ने बताया बीमारियों से मुक्ति पाने का मंत्र

Neem Karoli Baba Aur Rog Mukti Vaidik Mantra प्रिय भक्तों आज हम आप सभी को ऐसे मंत्र के बारे में बताएंगे जिसका उच्चारण करके आप सभी रोगों से मुक्ति पा सकते हैं। हम सभी के जीवन में अनेकों अनेक रोग कभी न कभी आ ही जाते हैं जिनकी वजह से हम सभी का जीवन हस्त व्यस्त हो जाता है। परम पूज्य श्री नीम करोली बाबा की कृपा से और हनुमान जी के आशीर्वाद से हम सभी को बाबा जी का सानिध्य प्राप्त हुआ और बाबा जी के सानिध्य में रहकर हम सभी ने राम नाम रूपी मंत्र को जाना जिसके उच्चारण मात्र से हम सभी को प्रभु श्री राम के साथ-साथ हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है। बाबा जी के दिशा निर्देशों के अनुसार हम सभी अपने जीवन की मोह माया से मुक्ति पा सकते हैं। यूं तो जब तक जीवन है तब तक माया से मुक्ति पाना संभव नहीं हो पता परंतु गृहस्थ जीवन में रहकर भी एक सन्यासी का जीवन जीना सहज हो सकता है यदि हम ईश्वर में अपने मन को रमाने का प्रयास करें और अपने कर्म पर ध्यान दे क्योंकि गीता में भी भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि कर्म ही प्रधान है। यदि हम बिना किसी लोभ के, बिना किसी आशा के, बिना ये सोचे कि यह पुण्य है या पाप केवल ...

Kolhapur Mahalaxmi Temple : अंबाबाई का रहस्य

Kolhapur Mahalaxmi Temple

कोल्हापुर का माता महालक्ष्मी मंदिर विश्व विख्यात है। यह दिव्य मंदिर किसी पहचान का मोहताज नहीं है। इस मंदिर की असंख्य विशेषताएं है जिनमे से इस मंदिर का पौराणिक इतिहास इस मंदिर को अन्य मंदिरों में विशिष्ट स्थान प्रदान करता है। माता महालक्ष्मी को यह अंबाबाई के नाम से उनके भक्त पुकारते है। 
अंबाबाई मंदिर पूरे महाराष्ट्र की शोभा है। अंबाबाई देवस्थान जो की कोल्हापुर में पड़ता है, प्रतिवर्ष यहा करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शनों का लाभ उठाकर मनोवांछित फलों को प्राप्त करते है। यह मंदिर 1300 साल से भी अधिक पुराना है और इसे महाराष्ट्र के आठ अष्टविनायक मंदिरों में से एक माना जाता है।

कोल्हापुर महालक्ष्मी मंदिर का इतिहास

कई शताब्दियों से महालक्ष्मी माता का यह मंदिर सम्पूर्ण विश्व की आस्था का केंद्र बना हुवा है। बात 7वीं शताब्दी की है, जब चालुक्य राजा करणदेव ने इस विशाल मंदिर की स्थापना की। उसके पश्चात 12वीं शताब्दी में, यादव राजाओं ने मंदिर का विस्तार कर मंदिर को भव्यता प्रदान की। फिर समय आया मराठाओं का। बात 17वीं शताब्दी जिन्हे जब मराठा महाराज शिवाजी ने मंदिर में सोने की मूर्ति स्थापित की।

मंदिर में दर्शन

मंदिर सुबह 6 बजे से रात 11 बजे तक खुला रहता है। दर्शन के लिए कोई टिकट नहीं है। मंदिर तक पहुंचने के लिए, आप कोल्हापुर हवाई अड्डे या रेलवे स्टेशन से बस या टैक्सी ले सकते हैं।

यहां कुछ अन्य रोचक तथ्य दिए गए हैं जो आपको कोल्हापुर महालक्ष्मी मंदिर के बारे में जानना चाहिए:

 * मंदिर का गर्भगृह 3 फीट ऊँचा और 2 फीट चौड़ा है।
 * मंदिर के ध्वजस्तंभ की ऊंचाई 52 फीट है।
 * मंदिर में नौ कुंड हैं, जिनमें से प्रत्येक का अपना महत्व है।
 * मंदिर में 108 दीप जलाए जाते हैं।
 * मंदिर में हर साल नवरात्रि का उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

मंदिर की विशेषताएं

मंदिर द्रविड़ शैली में बना है। मंदिर का गर्भगृह सोने की मूर्ति से सुसज्जित है। मंदिर परिसर में कई अन्य मंदिर और मंडप भी हैं।

श्रीमद्भगवद्गीता ने बताया महालक्ष्मी मंदिर का पौराणिक महत्व

यू तो शताब्दियों से महालक्ष्मी मंदिर की असंख्य विशेषताएं हम सभी जानते आए है पर क्या आपको पता है की महालक्ष्मी के इस दिव्य कोल्हापुर के मंदिर के विषय में भगवद्गीता क्या बोलती है?
श्रीमद्भगवद्गीता के 12वे अध्याय के महात्म की कथा का श्रवण करने से कोल्हापुर महालक्ष्मी माता के मंदिर की दिव्यता का बोध होता है।

श्रीमद्भगवद्गीताके बारहवें अध्यायका माहात्म्य

श्रीमहादेवजी कहते हैं-पार्वती ! दक्षिण दिशामें कोल्हापुर नामका एक नगर है, जो सब प्रकारके सुखोंका आधार, सिद्ध-महात्माओंका निवासस्थान तथा सिद्धि-प्राप्तिका क्षेत्र है। वह पराशक्ति भगवती लक्ष्मीका प्रधान पीठ है। सम्पूर्ण देवता उसका सेवन करते हैं। वह पुराणप्रसिद्ध तीर्थ भोग एवं मोक्ष प्रदान करनेवाला है। वहाँ करोड़ों तीर्थ और शिवलिङ्ग हैं। रुद्रगया भी वहीं है। वह विशाल नगर लोगोंमें बहुत विख्यात है। एक दिन कोई युवक पुरुष उस नगरमें आया। [ वह कहींका राजकुमार था] उसके शरीरका रंग गोरा, नेत्र सुन्दर, ग्रीवा शङ्खके समान, कंधे मोटे, छाती चौड़ी तथा भुजाएँ बड़ी-बड़ी थीं। नगरमें प्रवेश करके सब ओर महलोंकी शोभा निहारता हुआ वह देवेश्वरी महालक्ष्मीके दर्शनार्थ उत्कण्ठित हो मणिकण्ठ तीर्थमें गया और वहाँ स्त्रान करके उसने पितरोंका तर्पण किया। फिर महामाया महालक्ष्मीजीको प्रणाम करके भक्तिपूर्वक स्तवन करना आरम्भ किया। राजकुमार बोला- जिसके हृदयमें असीम दया भरी हुई है, जो समस्त कामनाओंको देती तथा अपने कटाक्षमात्रसे सारे जगत्‌की सृष्टि, पालन और संहार करती है, उस जगन्माता महालक्ष्मीकी जय हो। जिस शक्तिके सहारे उसीके आदेशके अनुसार परमेष्ठी ब्रह्मा सृष्टि करते हैं, भगवान् अच्युत जगत्का पालन करते हैं तथा भगवान् रुद्र अखिल विश्वका संहार करते हैं, उस सृष्टि, पालन और संहारकी शक्तिसे सम्पन्न भगवती पराशक्तिका मैं भजन करता हूँ।
कमले ! योगिजन तुम्हारे चरणकमलोंका चिन्तन करते हैं। कमलालये ! तुम अपनी स्वाभाविक सत्तासे ही हमारे समस्त इन्द्रियगोचर विषयोंको जानती हो। तुम्हीं कल्पनाओंके समूहको तथा उसका संकल्प करनेवाले मनको उत्पन्न करती हो। इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति और क्रियाशक्ति - ये सब तुम्हारे ही रूप हैं। तुम परासंवित् (परमज्ञान)- रूपिणी हो। तुम्हारा स्वरूप निष्कल, निर्मल, नित्य, निराकार, निरञ्जन, अन्तरहित, आतङ्कशून्य, आलम्बहीन तथा निरामय है। देवि ! तुम्हारी महिमाका वर्णन करनेमें कौन समर्थ हो सकता है। जो षट्चक्रोंका भेदन करके अन्तःकरणके बारह स्थानोंमें विहार करती है, अनाहत, ध्वनि, विन्दु, नाद और कला - ये जिसके स्वरूप हैं, उस माता महालक्ष्मीको मैं प्रणाम करता हूँ। माता ! तुम अपने [मुखरूपी] पूर्णचन्द्रमासे प्रकट होनेवाली अमृतराशिको बहाया करती हो। तुम्हीं परा, पश्यन्ती, मध्यमा और वैखरी नामक वाणी हो। मैं तुम्हें नमस्कार करता हूँ। देवि ! तुम जगत्की रक्षाके लिये अनेक रूप धारण किया करती हो। अम्बिके ! तुम्हीं ब्राह्मी, वैष्णवी तथा माहेश्वरी शक्ति हो। वाराही, महालक्ष्मी, नारसिंही, ऐन्द्री, कौमारी, चण्डिका, जगत्‌को पवित्र करनेवाली लक्ष्मी, जगन्माता सावित्री, चन्द्रकला तथा रोहिणी भी तुम्हीं हो। परमेश्वरि ! तुम भक्तोंका मनोरथ पूर्ण करनेके लिये कल्पलताके समान हो। मुझपर प्रसन्न हो जाओ।
उसके इस प्रकार स्तुति करनेपर भगवती महालक्ष्मी अपना साक्षात् स्वरूप धारण करके बोलीं- 'राजकुमार ! मैं तुमसे प्रसन्न हूँ। तुम कोई उत्तम वर माँगो।'
राजपुत्र बोला- माँ ! मेरे पिता राजा बृहद्रथ अश्वमेध नामक महान् यज्ञका अनुष्ठान कर रहे थे। वे दैवयोगसे रोगग्रस्त होकर स्वर्गगामी हो गये। इसी बीचमें यूपमें बँधे हुए मेरे यज्ञसम्बन्धी घोड़ेको, जो समूची पृथ्वीकी परिक्रमा करके लौटा था, किसीने रात्रिमें बन्धन काटकर कहीं अन्यत्र पहुँचा दिया। उसकी खोजमें मैंने कुछ लोगोंको भेजा था; किंतु वे कहीं भी उसका पता न पाकर जब खाली हाथ लौट आये हैं, तब मैं सब ऋत्विजोंसे आज्ञा लेकर तुम्हारी शरणमें आया हूँ। देवि ! यदि तुम मुझपर प्रसन्न हो तो मेरे यज्ञका घोड़ा मुझे मिल जाय, जिससे यज्ञ पूर्ण हो सके। तभी मैं अपने पिता महाराजका ऋण उतार सकूँगा। शरणागतोंपर दया करनेवाली जगज्जननी लक्ष्मी ! जिससे मेरा यज्ञ पूर्ण हो, वह उपाय करो।
भगवती लक्ष्मीने कहा- राजकुमार ! मेरे मन्दिरके दरवाजेपर एक ब्राह्मण रहते हैं, जो लोगोंमें सिद्धसमाधिके नामसे विख्यात हैं। वे मेरी आज्ञासे तुम्हारा सब काम पूरा कर देंगे। महालक्ष्मीके इस प्रकार कहनेपर राजकुमार उस स्थानपर आये,
जहाँ सिद्धसमाधि रहते थे। उनके चरणोंमें प्रणाम करके राजकुमार चुपचाप हाथ जोड़ खड़े हो गये। तब ब्राह्मणने कहा- 'तुम्हें माताजीने यहाँ भेजा है। अच्छा, देखो; अब मैं तुम्हारा सारा अभीष्ट कार्य सिद्ध करता हूँ।' यों कहकर मन्त्रवेत्ता ब्राह्मणने सब देवताओंको वहीं खींचा। राजकुमारने देखा, उस समय सब देवता हाथ जोड़े थर-थर काँपते हुए वहाँ उपस्थित हो गये। तब उन श्रेष्ठ ब्राह्मणने समस्त देवताओंसे कहा- देवगण ! इस राजकुमारका अश्व, जो यज्ञके लिये निश्चित हो चुका था, रातमें देवराज इन्द्रने चुराकर अन्यत्र पहुँचा दिया है; उसे शीघ्र ले आओ।' तब देवताओंने मुनिके कहनेसे यज्ञका घोड़ा लाकर दे दिया। इसके बाद उन्होंने उन्हें जानेकी आज्ञा दी। देवताओंका आकर्षण देखकर तथा खोये हुए अश्वको पाकर राजकुमारने मुनिके चरणोंमें प्रणाम करके कहा- 'महर्षे ! आपका यह सामर्थ्य आश्चर्यजनक है। आप ही ऐसा कार्य कर सकते हैं, दूसरा कोई नहीं। ब्रह्मन् ! मेरी प्रार्थना सुनिये, मेरे पिता राजा बृहद्रथ अश्वमेध यज्ञका अनुष्ठान आरम्भ करके दैवयोगसे मृत्युको प्राप्त हो गये हैं। अभीतक उनका शरीर तपाये हुए तेलमें सुखाकर मैंने रख छोड़ा है। साधुश्रेष्ठ ! आप उन्हें पुनः जीवित कर दीजिये।' यह सुनकर महामुनि ब्राह्मणने किंचित् मुसकराकर कहा - 'चलो, जहाँ यज्ञमण्डपमें तुम्हारे पिता मौजूद हैं, चलें'। तब सिद्धसमाधिने राजकुमारके साथ वहाँ जाकर जल अभिमन्त्रित किया और उसे उस
शवके मस्तकपर रखा। उसके रखते ही राजा सचेत होकर उठ बैठे। फिर उन्होंने ब्राह्मणको देखकर पूछा- 'धर्मस्वरूप ! आप कौन हैं ?' तब राजकुमारने महाराजसे पहलेका सारा हाल कह सुनाया। राजाने अपनेको पुनः जीवनदान देनेवाले ब्राह्मणको नमस्कार करके पूछा- 'ब्रह्मन् ! किस पुण्यसे आपको यह अलौकिक शक्ति प्राप्त हुई है ?' उनके यों कहनेपर ब्राह्मणने मधुर वाणीमें कहा- राजन् ! मैं प्रतिदिन आलस्यरहित होकर गीताके बारहवें अध्यायका जप करता हूँ; उसीसे मुझे यह शक्ति मिली है, जिससे तुम्हें जीवन प्राप्त हुआ है। यह सुनकर ब्राह्मणोंसहित राजाने उन ब्रह्मर्षिसे गीताके बारहवें अध्यायका अध्ययन किया। उसके माहात्म्यसे उन सबकी सद्गति हो गयी। दूसरे-दूसरे जीव भी उसके पाठसे परम मोक्षको प्राप्त हो चुके हैं। 

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