Neem Karoli Baba Aur Rog Mukti Vaidik Mantra प्रिय भक्तों आज हम आप सभी को ऐसे मंत्र के बारे में बताएंगे जिसका उच्चारण करके आप सभी रोगों से मुक्ति पा सकते हैं। हम सभी के जीवन में अनेकों अनेक रोग कभी न कभी आ ही जाते हैं जिनकी वजह से हम सभी का जीवन हस्त व्यस्त हो जाता है। परम पूज्य श्री नीम करोली बाबा की कृपा से और हनुमान जी के आशीर्वाद से हम सभी को बाबा जी का सानिध्य प्राप्त हुआ और बाबा जी के सानिध्य में रहकर हम सभी ने राम नाम रूपी मंत्र को जाना जिसके उच्चारण मात्र से हम सभी को प्रभु श्री राम के साथ-साथ हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है। बाबा जी के दिशा निर्देशों के अनुसार हम सभी अपने जीवन की मोह माया से मुक्ति पा सकते हैं। यूं तो जब तक जीवन है तब तक माया से मुक्ति पाना संभव नहीं हो पता परंतु गृहस्थ जीवन में रहकर भी एक सन्यासी का जीवन जीना सहज हो सकता है यदि हम ईश्वर में अपने मन को रमाने का प्रयास करें और अपने कर्म पर ध्यान दे क्योंकि गीता में भी भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि कर्म ही प्रधान है। यदि हम बिना किसी लोभ के, बिना किसी आशा के, बिना ये सोचे कि यह पुण्य है या पाप केवल ...
लकड़ी का पुल और बाबा नीम करोली | Wooden bridge and baba neem karoli
यह बात 1966 की है। तब कैंची नदी पर इतना बड़ा पुल नहीं था। एक लकड़ी का छोटा सा पुल था। कई बार दोपहर में नीम करोली बाबा वहीं जाकर बैठ जाते थे और भोजन करते थे। पंद्रह जून के भंडारे से पहले एक दिन वे उसी पुल पर बैठे हुए थे कि बरेली से एक भक्त आये। ट्रक में कुछ पत्तल और कसोरे (मिट्टी का बर्तन) साथ लाये थे भंडारे के लिए। उन्होंने वह सब वहां अर्पित करते हुए मुझसे कहा, "दादा बताइये और क्या जरूरत है?"
मेरे नहीं कहने के बाद भी वे बार बार यही जोर देते रहे कि बताइये और क्या चाहिए। बताइये और क्या चाहिए। उनके बहुत जोर देने पर मैंने कह दिया कि दो खांची (बांस का बना बड़ा बर्तन) कसोरे और भेज दीजिएगा।
तब तक बाबाजी चिल्लाये। क्या? क्या करने जा रहे हो तुम उसके साथ मिलकर? है तो सबकुछ। तुम बहुत लालची हो गये हो। कोई कुछ देना चाहे तो तुम तत्काल झोली फैला देते हो।" मैं चुप रहा।
प्रसाद लेने के बाद जब वह व्यक्ति जाने के लिए तैयार हुआ और महाराज जी के पास उनके चरण छूने पहुंचा तो सौ रूपये का नोट निकालकर रख दिया। महाराज जी ने तत्काल वह सौ रूपये का नोट उसके सामने ही फाड़कर फेंक दिया। वह व्यक्ति बहुत खिन्न मन से वापस लौट गया।
उसके जाने के बाद महाराज जी ने कहा, "आप समझते नहीं हैं दादा। कंजूस का दिया धन या भोजन आपको स्वीकार नहीं करना चाहिए। हजम नहीं होगा। उस आदमी के पास बहुत पैसा है लेकिन दान पुण्य के लिए धेला भी खर्च नहीं करता है। मैं उसको बहुत अच्छे से जानता हूं।"
जय बाबा नीम करौली महाराज जी , जयगुरूदेव।
नीम करोली बाबा के जीवन की इस छोटी सी कहानी से हमको ये प्रेरणा मिलती है की दान भी धर्मी का लेना चाहिए अर्थात धर्मी द्वारा दिया गया 1 रूपया भी फल जाता है और अधर्मी का दिया हीरा भी व्यर्थ जाता है।
यह बात 1966 की है। तब कैंची नदी पर इतना बड़ा पुल नहीं था। एक लकड़ी का छोटा सा पुल था। कई बार दोपहर में नीम करोली बाबा वहीं जाकर बैठ जाते थे और भोजन करते थे। पंद्रह जून के भंडारे से पहले एक दिन वे उसी पुल पर बैठे हुए थे कि बरेली से एक भक्त आये। ट्रक में कुछ पत्तल और कसोरे (मिट्टी का बर्तन) साथ लाये थे भंडारे के लिए। उन्होंने वह सब वहां अर्पित करते हुए मुझसे कहा, "दादा बताइये और क्या जरूरत है?"
मेरे नहीं कहने के बाद भी वे बार बार यही जोर देते रहे कि बताइये और क्या चाहिए। बताइये और क्या चाहिए। उनके बहुत जोर देने पर मैंने कह दिया कि दो खांची (बांस का बना बड़ा बर्तन) कसोरे और भेज दीजिएगा।
तब तक बाबाजी चिल्लाये। क्या? क्या करने जा रहे हो तुम उसके साथ मिलकर? है तो सबकुछ। तुम बहुत लालची हो गये हो। कोई कुछ देना चाहे तो तुम तत्काल झोली फैला देते हो।" मैं चुप रहा।
प्रसाद लेने के बाद जब वह व्यक्ति जाने के लिए तैयार हुआ और महाराज जी के पास उनके चरण छूने पहुंचा तो सौ रूपये का नोट निकालकर रख दिया। महाराज जी ने तत्काल वह सौ रूपये का नोट उसके सामने ही फाड़कर फेंक दिया। वह व्यक्ति बहुत खिन्न मन से वापस लौट गया।
उसके जाने के बाद महाराज जी ने कहा, "आप समझते नहीं हैं दादा। कंजूस का दिया धन या भोजन आपको स्वीकार नहीं करना चाहिए। हजम नहीं होगा। उस आदमी के पास बहुत पैसा है लेकिन दान पुण्य के लिए धेला भी खर्च नहीं करता है। मैं उसको बहुत अच्छे से जानता हूं।"
जय बाबा नीम करौली महाराज जी , जयगुरूदेव।
नीम करोली बाबा के जीवन की इस छोटी सी कहानी से हमको ये प्रेरणा मिलती है की दान भी धर्मी का लेना चाहिए अर्थात धर्मी द्वारा दिया गया 1 रूपया भी फल जाता है और अधर्मी का दिया हीरा भी व्यर्थ जाता है।
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