शुक्रवार का दिन देवी महालक्ष्मी और शुक्र देव का दिन माना जाता है। शुक्रवार को मां लक्ष्मी की पूजा करने से जीवन में सुख-सुविधा की कमी नहीं रहती। साथ ही, शुक्र ग्रह की शुभता से सौंदर्य में निखार, ऐश्वर्य, कीर्ति और धन-दौलत प्राप्त होती है। Shukrawar ( Friday) Ka Devta शुक्रवार को मां संतोषी की पूजा और व्रत भी किया जाता है। हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, मां संतोषी को भगवान श्री गणेश की पुत्री माना जाता है। मान्यता है कि मां संतोषी की पूजा करने से साधक के जीवन में आ रही तमाम तरह की समस्याएं दूर होती हैं और उसे सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही, जिन्हें संतान सुख प्राप्त नहीं हो पा रहा वो संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को करते हैं। शुक्रवार को वैभव लक्ष्मी व्रत भी रखा जाता है. हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, माता वैभव लक्ष्मी से सुख-समृद्धि और धन-धान्य का आशीर्वाद पाने के लिए शुक्रवार का व्रत सबसे उत्तम उपाय है। शुक्रवार का नाम शुक्र देवता के नाम पर ही पड़ा है। नॉर्स पौराणिक कथाओं में फ्रिग ओडिन की पत्नी हैं। उन्हें विवाह की देवी माना जाता था। शुक्रवार को किसका व्रत करना चाहिए?
नीम करोली बाबा ने युधिष्ठिर को दिया प्राण दान - श्री कैंची धाम
नीम करोली बाबा जी के भगत श्री ओंकार सिंह जी के पुत्र ,युधिष्ठिर सिंह के साथ बाबा नीम करोली उसी की गाड़ी में भूमियाधार आये थे। रात्रि विश्राम के बाद सुबह ब्रम्ह मुहूर्त के अंधेरे में ही युधिष्ठिर और उमादत्त शुक्ल मंदिर से बाहर आ गए कि अंधेरे-अंधेरे में ही शौचादि से निपट लें। कुछ दूर पर एक चट्टान पर से अपना कोट जैसे ही उठाना चाहा कि उन्हें एक काले नाग(कोबरा) ने डस लिया। युधिष्ठिर चिल्लाते हुए मंदिर की तरफ भागे कि," साँप ने काट लिया ", पर आधे मार्ग में ही अचेत होकर गिर पड़े । कुछ ही देर में उनका सारा शरीर विष के प्रभाव से काला पड़ गया और उन्हें अन्य लोग मंदिर के पास ले आये । वे सब प्रकार से मृत हो चुके थे।
उधर नीम करोली बाबा चिल्लाते रहे कि ,"युधिष्ठिर मर गया है। इसके बाप को खबर भेज दो"। कुछ देर बाद उन्होनें बृहमचारी बाबा को डाँट लगाई कि ,"देखते क्या हो । इसे खूब तेज चाय पिलाओ"। ऐसा ही करने का प्रयास किया गया पर मृत(?) को कैसे पिलाई जाती चाय ? तब बाबा जी स्वयं आये ,युधिष्ठिर को डाँट कर कहा ," उठ चाय पी", और अपने हाथो से उसे उठाकर , बैठाकर चाय पिला दी। उसके बाद उसको आज्ञा दी कि," उठो गाड़ी पर बैठो । हमें रानीखेत ले जाओ ।" सभी आश्चर्य चकित हो यह तमाशा देखते रहे। बाबा जी स्वयं उसके बगल में बैठ गए और युधिष्ठिर गाड़ी चलाने लगे !!भवाली पार हो गई ।उधर बाबा जी और तेज, और तेज कहते रहे तथा जब भी युधिष्ठिर विष के नशे मे झूमने सोने लगते तभी महाराज जी उनको अपने पाँवों की ठोकर से सचेत कर देते कहते हुए कि,"सोता क्यों है ?" कैंची भी निकल गई ,गरमपानी ,खैरना आदि पार हो गए इसी प्रकार ,और फिर पुल पार रानीखेत रोड़ पर गाड़ी दौड़ चली।
नीम करोली बाबा जी के भगत श्री ओंकार सिंह जी के पुत्र ,युधिष्ठिर सिंह के साथ बाबा नीम करोली उसी की गाड़ी में भूमियाधार आये थे। रात्रि विश्राम के बाद सुबह ब्रम्ह मुहूर्त के अंधेरे में ही युधिष्ठिर और उमादत्त शुक्ल मंदिर से बाहर आ गए कि अंधेरे-अंधेरे में ही शौचादि से निपट लें। कुछ दूर पर एक चट्टान पर से अपना कोट जैसे ही उठाना चाहा कि उन्हें एक काले नाग(कोबरा) ने डस लिया। युधिष्ठिर चिल्लाते हुए मंदिर की तरफ भागे कि," साँप ने काट लिया ", पर आधे मार्ग में ही अचेत होकर गिर पड़े । कुछ ही देर में उनका सारा शरीर विष के प्रभाव से काला पड़ गया और उन्हें अन्य लोग मंदिर के पास ले आये । वे सब प्रकार से मृत हो चुके थे।
उधर नीम करोली बाबा चिल्लाते रहे कि ,"युधिष्ठिर मर गया है। इसके बाप को खबर भेज दो"। कुछ देर बाद उन्होनें बृहमचारी बाबा को डाँट लगाई कि ,"देखते क्या हो । इसे खूब तेज चाय पिलाओ"। ऐसा ही करने का प्रयास किया गया पर मृत(?) को कैसे पिलाई जाती चाय ? तब बाबा जी स्वयं आये ,युधिष्ठिर को डाँट कर कहा ," उठ चाय पी", और अपने हाथो से उसे उठाकर , बैठाकर चाय पिला दी। उसके बाद उसको आज्ञा दी कि," उठो गाड़ी पर बैठो । हमें रानीखेत ले जाओ ।" सभी आश्चर्य चकित हो यह तमाशा देखते रहे। बाबा जी स्वयं उसके बगल में बैठ गए और युधिष्ठिर गाड़ी चलाने लगे !!भवाली पार हो गई ।उधर बाबा जी और तेज, और तेज कहते रहे तथा जब भी युधिष्ठिर विष के नशे मे झूमने सोने लगते तभी महाराज जी उनको अपने पाँवों की ठोकर से सचेत कर देते कहते हुए कि,"सोता क्यों है ?" कैंची भी निकल गई ,गरमपानी ,खैरना आदि पार हो गए इसी प्रकार ,और फिर पुल पार रानीखेत रोड़ पर गाड़ी दौड़ चली।
रानीखेत पहुँचकर महाराज जी ने हुक्म दिया कि, "वापिस चलो"। बाबा लौटते वक़्त कुछ देर कैंची में रूके। वे उतर कर अन्यत्र चले गये। तब तक युधिष्ठिर यथेष्ट रूप से सचेत हो चुके थे। उन्हें भूख भी लग आई । तभी देखा कि गाड़ी की पिछली सीट पर ढेर सारे सेव रखे है!! भरपेट सेव खाये और फिर बाबा जी के आने पर पूर्ण चेतना में भूमियिधार लौट आये। विष का पूरा इलाज हो गया !!
एक सर्प दंश से मृत प्राय व्यक्ति द्वारा पहाड़ी सड़कों के उतार चढ़ाव एंव मोड़ो में गाड़ी चलाये जाने की कल्पना पाठक स्वयं कर सकते है।(ब्रह्मचारी बाबा के अनुसार इस घटना के बाद महाराज जी तीन दिन तक कुटी में बन्द रहे। श्री नीम करोली बाबा का पूरा शरीर तीन दिन तक कला बना रहा !!)
श्री नीम करोली महाराज की जय
श्री कैंची धाम की जय
अनन्त कथामृत
एक सर्प दंश से मृत प्राय व्यक्ति द्वारा पहाड़ी सड़कों के उतार चढ़ाव एंव मोड़ो में गाड़ी चलाये जाने की कल्पना पाठक स्वयं कर सकते है।(ब्रह्मचारी बाबा के अनुसार इस घटना के बाद महाराज जी तीन दिन तक कुटी में बन्द रहे। श्री नीम करोली बाबा का पूरा शरीर तीन दिन तक कला बना रहा !!)
श्री नीम करोली महाराज की जय
श्री कैंची धाम की जय
अनन्त कथामृत
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