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शुक्रवार का देवता कौन है? शुक्रवार का मंत्र क्या है?

शुक्रवार का दिन देवी महालक्ष्मी और शुक्र देव का दिन माना जाता है। शुक्रवार को मां लक्ष्मी की पूजा करने से जीवन में सुख-सुविधा की कमी नहीं रहती। साथ ही, शुक्र ग्रह की शुभता से सौंदर्य में निखार, ऐश्वर्य, कीर्ति और धन-दौलत प्राप्त होती है। Shukrawar ( Friday) Ka Devta शुक्रवार को मां संतोषी की पूजा और व्रत भी किया जाता है। हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, मां संतोषी को भगवान श्री गणेश की पुत्री माना जाता है। मान्यता है कि मां संतोषी की पूजा करने से साधक के जीवन में आ रही तमाम तरह की समस्याएं दूर होती हैं और उसे सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही, जिन्हें संतान सुख प्राप्त नहीं हो पा रहा वो संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को करते हैं। शुक्रवार को वैभव लक्ष्मी व्रत भी रखा जाता है. हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, माता वैभव लक्ष्मी से सुख-समृद्धि और धन-धान्य का आशीर्वाद पाने के लिए शुक्रवार का व्रत सबसे उत्तम उपाय है।  शुक्रवार का नाम शुक्र देवता के नाम पर ही पड़ा है। नॉर्स पौराणिक कथाओं में फ्रिग ओडिन की पत्नी हैं। उन्हें विवाह की देवी माना जाता था। शुक्रवार को किसका व्रत करना चाहिए?

Navratri Fifth Day : Maa Skandamata

Navratri Pujan: Skandamata

प्रिय भक्तों नवरात्रि के पंचम दिवस में माता स्कंदमाता की पूजा की जाती है। स्कंदमाता, माता आदिशक्ति के ही पांचवें स्वरूप को कहा जाता है। इस स्वरूप में माता का नाम स्कंद इसलिए पड़ा क्योंकि माता के पुत्र भगवान स्वामी कार्तिकेय का नाम स्कंद है और जो स्कंद की माता हैं उन्हें स्कंदमाता कहा जाता है।

Skandamata Ka  Swaroop

आदि शक्ति के इस रूप में माता की चार भुजाएं हैं। माता अपने दोनों हाथ में कमल के पुष्प को धारण किए हुए हैं और अपने एक हाथ से कुमार कार्तिकेय को गोद लिए हुए हैं। 

Skandamata Ka Divya Darshan 

मोक्ष के द्वार खोलने वाली मां स्कंदमाता परम सुखदाई है। पौराणिक कथाओं में यह सुनने को मिलता है कि स्कंदमाता की उपासना से सारी इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं और प्राणियों के सारे मनोरथ सफल होते हैं। 

Skandamata Ka Rang 

स्कंदमाता के दिव्य स्वरूप का वर्णन करना सहज नहीं है। पौराणिक मान्यताओं और कथाओं के अनुसार स्कंदमाता का रंग सफेद कहा गया है। देवी भागवत में कहा गया है कि माता स्कंदमाता का प्राकट्य मां गौरी से ही हुआ था इसलिए उनका रंग धवल यानी सफेद है। 

नवरात्रि के पांचवे दिन जब हम स्कंदमाता की पूजा करते हैं उस दिन साधक का मन उसके विशुद्ध चक्र में अवस्थित होता है। 

शास्त्रों में नवरात्रि के पांचवे दिन का पुष्कल महत्व बताया गया है। इस वक्त साधक का मन उसके विशुद्धि चक्र में स्थित होता है। उसके बाह्य क्रियाओं एवं विकारो का लोप हो जाता है। वह विशुद्ध चैतन्य स्वरूप की ओर अग्रसर हो रहा होता है। उसका मन समस्त सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर पद्मासना मां स्कंदमाता के रूप में पूर्णता लीन होने लगता है। उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होने लगती हैं और वह माता स्कंदमाता की कृपा को प्राप्त कर लेता है। 

पुराणों के अनुसार स्कंदमाता की उपासना करने वाले भक्तों के लिए उनकी कोई भी इच्छा अपूर्ण नहीं रहती। स्कंदमाता के भक्तों के लिए मृत्युलोक में परम शांति  होने लगती है।  मोक्ष के द्वारा स्वयं खुल जाते हैं। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज से संपन्न हो जाता है। 

Skandamata Ka Mantra 

या देवी सर्वभूतेषु मां स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ 

सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया। 

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥

Skanda Mata Ki Aarti 

जय तेरी हो स्कंदमाता।

पांचवां नाम तुम्हारा आता।

सब के मन की जानन हारी।

जग जननी सब की महतारी।

तेरी ज्योत जलाता रहूं मैं।

हर दम तुम्हें ध्याता रहूं मैं।

कई नामों से तुझे पुकारा।

मुझे एक है तेरा सहारा।

कहीं पहाड़ों पर है डेरा।

कई शहरो में तेरा बसेरा।

हर मंदिर में तेरे नजारे।

गुण गाए तेरे भक्त प्यारे।

भक्ति अपनी मुझे दिला दो।

शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो।

इंद्र आदि देवता मिल सारे।

करे पुकार तुम्हारे द्वारे।

दुष्ट दैत्य जब चढ़ कर आए।

तुम ही खंडा हाथ उठाएं

दास को सदा बचाने आईं

'चमन' की आस पुराने आई।

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